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ISIS Leader Killed Donald Trump Video: ISIS Leader Abu Khadija Killed US-Iraq Airstrike में बड़ा ऑपरेशन

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ISIS Air Strike: इराकी सुरक्षा बलों ने ISIS कमांडर अबू खदीजा को मार गिराया, जिससे संगठन को बड़ा झटका लगा. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ऑपरेशन का श्रेय लिया. अमेरिकी सेंट्रल कमांड ने हवाई हमले की पुष्टि की.

डोनाल्ड ट्रंप ने ISIS आतंकी को मारने का श्रेय लिया. (Reuters/X)
हाइलाइट्स
- इराकी सुरक्षा बलों ने ISIS कमांडर अबू खदीजा को मारा
- अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने ऑपरेशन का श्रेय लिया
- अबू खदीजा की मौत ISIS के लिए बड़ा झटका
वॉशिंगटन: ISIS को एक बड़ा झटका लगा है. इराकी सुरक्षा बलों ने शुक्रवार को एक ऑपरेशन में अब्दुल्ला मक्की मुसलिह अल-रुफाई उर्फ अबू खदीजा को मार गिराया. प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अल-सुदानी ने इसके मारे जाने की घोषणा की है, लेकिन अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसका श्रेय ले रहे हैं. अबू खदीजा इराक और सीरिया में इस्लामिक स्टेट का कमांडर था. इसे इराक और दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादियों में से एक माना जाता था. ट्रंप ने अपने ट्रुथ सोशल प्लेटफॉर्म पर लिखा, ‘आज इराक में ISIS का भगोड़ा नेता मारा गया. हमारे साहसी योद्धाओं ने उसे लगातार खोजा. एक और ISIS सदस्य के साथ उसका दुखद जीवन समाप्त हो गया. इराकी सरकार और कुर्दिश क्षेत्रीय सरकार के समन्वय में ऑपरेशन हुआ.’
वाइट हाउस ने अबू खदीजा पर किए गए एयर स्ट्राइक का वीडियो शेयर किया है. वीडियो के साथ लिखा गया, ‘राष्ट्रपति ट्रंप ने सटीक हमले में ISIS नेता को खत्म किया.’ अमेरिकी सेंट्रल कमांड ने कहा कि अमेरिकी बलों ने इराकी सुरक्षा बलों के सहयोग से इराक के अल अंबर प्रांत में एक सटीक हवाई हमला किया, जिसमें अबू खदीजा और एक अन्य ISIS ऑपरेटिव मारा गया. दोनों का शव जब मिला तो उनके पास बिना फटी आत्मघाती जैकेटें थीं. सेंट्रल कमांड ने आगे लिखा, ‘ISIS के सबसे वरिष्ठ निर्णय लेने वाले निकाय के अमीर के रूप में, अबू खदीजा ने वैश्विक स्तर पर ISIS की रसद और योजना की जिम्मेदारी संभाली.’
🇺🇸CAUGHT ON VIDEO: President Trump Terminates ISIS Leader in Targeted Strike pic.twitter.com/2tr5QQOGEk
— The White House (@WhiteHouse) March 15, 2025
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2037314982578 रुपये खर्च, फिर कैसे 1 डॉलर में बेच दी अमेरिका की ये तिजोरी, जानें पनामा डील की कहानी
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Panama Canal: एक नहर जिसे आज भी अमेरिका की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग उपलब्धी माना जाता है. इसे बनाने में 39 साल का समय लगा और कई कंपनियां दिवालिया हो गईं. इस दौरान करीब 38000 लोगों की जान चली गई. उस वक्त इसे बनाने …और पढ़ें

पनामा नहर को लेकर डोनाल्ड ट्रंप चीन से भिड़ने को तैयार दिख रहे हैं. (फाइल)
हाइलाइट्स
- पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने यह नहर 1 डॉलर में पनामा को सौंप दिया था.
- ट्रंप प्रशासन इस नहर पर फिर से कब्जा करने की योजना बना रहा है.
- पनामा नहर अमेरिका की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग उपलब्धियों में से एक है.
डोनाल्ड ट्रंप जबसे दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, तभी से उनकी नजर इस तिजोरी पर गड़ी है. ट्रंप ने 2025 के अपने पहले कांग्रेस संबोधन में इस नहर को लेकर एक बड़ा ऐलान किया. ट्रंप ने कहा, ‘(पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति) रेगन के समय से अलग, अब हमारे पास इजराइल जैसी शक्तिशाली सेना बनाने की तकनीक है और हम अपने नागरिकों की रक्षा करेंगे. हम अपने व्यावसायिक और सैन्य जहाज निर्माण को बढ़ावा देंगे. व्हाइट हाउस में जहाज निर्माण के लिए एक नया कार्यालय स्थापित किया जाएगा, जो तेजी से काम करेगा. और राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करने के लिए हम पनामा नहर को वापस लेंगे. हमने इसकी शुरुआत कर दी है. एक बड़ी अमेरिकी कंपनी ने पहले ही दोनों बंदरगाहों को खरीदने की घोषणा कर दी है.’
ट्रंप ने आगे कहा, ‘इस नहर को अमेरिकी पैसों से बनाया गया, 38,000 अमेरिकी मजदूरों ने इसे बनाने के दौरान अपनी जान गंवाई. यह हमारे प्रशासन का सबसे महंगा प्रोजेक्ट था, जिसे जिमी कार्टर ने मात्र 1 डॉलर में पनामा को सौंप दिया. यह चीन को नहीं दिया गया था, लेकिन अब हम इसे वापस ले रहे हैं.’
33 साल में बनकर हुआ तैयार
अटलांटिक और प्रशांत महासागरों को जोड़ने वाली पनामा नहर अमेरिका की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग उपलब्धियों में से एक मानी जाती है. इस नहर पर अब दक्षिण अमेरिकी देश पनामा का अधिकार है. इस नहर को बनाने का काम 1881 में शुरू हुआ था, जो वर्ष 1914 में पूरी तरह बनकर तैयार हुआ था. इस नहर को बनाने में तब कुल 287 मिलियन डॉलर (आज के हिसाब से 2037314982578 रुपये) खर्च हुए थे. इस प्रोजेक्ट के दौरान 38,000 से अधिक अमेरिकी मजदूरों ने मलेरिया और अन्य बीमारियों से अपनी जान गंवाई थी. लेकिन यह आश्चर्यजनक है कि इतनी महंगी और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण नहर को 1 डॉलर में पनामा को सौंप दिया गया.
पनामा नहर का निर्माण और अमेरिका की मेहनत
1904 में अमेरिका ने पनामा नहर के निर्माण की जिम्मेदारी संभाली. यह परियोजना इतनी कठिन थी कि फ्रांस पहले ही इसे अधूरा छोड़ चुका था. अमेरिका ने अत्याधुनिक तकनीक, कुशल इंजीनियरों और हजारों मेहनती मजदूरों की मदद से 1914 में इस नहर का निर्माण पूरा किया. इस परियोजना पर खर्च हुए अरबों डॉलर और हजारों मजदूरों की शहादत ने अमेरिका को एक नई रणनीतिक ताकत दी.
कैसे अमेरिका ने नहर को खो दिया?
1977 में अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने पनामा के साथ एक संधि की, जिसे Torijos-Carter Treaties कहा गया. इस संधि के तहत अमेरिका ने 31 दिसंबर 1999 को नहर को पनामा को सौंपने की सहमति दी.
दरअसल कार्टर प्रशासन का मानना था कि पनामा नहर के नियंत्रण को बनाए रखना अमेरिका के लिए फायदेमंद नहीं था. पनामा सरकार ने अमेरिका पर दबाव बनाया था कि उसे अपने क्षेत्र में संप्रभुता दी जाए. अमेरिका को यह लगा कि अगर वह नहर को पनामा को नहीं सौंपता, तो राजनीतिक अस्थिरता बढ़ सकती है. लेकिन यह फैसला विवादास्पद था. कई अमेरिकी नेताओं का मानना था कि यह नहर अमेरिका की “संपत्ति” थी और इसे इतनी आसानी से छोड़ देना एक ऐतिहासिक गलती थी.
1999 में, जब नहर को पनामा को आधिकारिक रूप से सौंपा गया, तो अमेरिका को इसके बदले में मात्र 1 डॉलर का प्रतीकात्मक भुगतान मिला. यह फैसला उस समय बेहद विवादास्पद था, क्योंकि यह अमेरिका की सामरिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए एक बड़ा झटका था. कई विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका ने बिना किसी खास रणनीतिक लाभ के यह सौदा किया. नहर के स्वामित्व को पनामा को सौंपने के बाद चीन समेत कई देशों की कंपनियां इसमें रुचि लेने लगीं और धीरे-धीरे इस महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग पर अमेरिका का प्रभाव कम हो गया.
क्या अमेरिका पनामा नहर पर दोबारा कब्जा कर सकता है?
ट्रंप प्रशासन के इस आक्रामक रुख के बाद सवाल उठता है कि क्या अमेरिका वाकई इस नहर पर दोबारा नियंत्रण कर सकता है? मौजूदा समय में पनामा नहर पर पनामा सरकार का नियंत्रण है, लेकिन इसमें चीन समर्थित कंपनियों की गहरी पैठ बन चुकी है.
अगर अमेरिका इस नहर पर फिर से कब्जा करना चाहता है, तो उसे या तो पनामा सरकार से नई डील करनी होगी या फिर सैन्य दबाव बनाना पड़ेगा. ट्रंप प्रशासन की नीति को देखते हुए यह संभावना जताई जा रही है कि अमेरिका जल्द ही इस दिशा में कदम उठा सकता है.
पनामा नहर केवल एक जलमार्ग नहीं, बल्कि अमेरिका की ऐतिहासिक और रणनीतिक धरोहर है. इसे 1 डॉलर में बेच देना न केवल आर्थिक रूप से नुकसानदेह था, बल्कि यह अमेरिका की वैश्विक शक्ति को भी कमजोर करने वाला निर्णय साबित हुआ. ट्रंप का ऐलान बताता है कि अब अमेरिका इस गलती को सुधारने के लिए आक्रामक नीति अपनाने को तैयार है. अमेरिका के इस दिशा में आगे बढ़ने के साथ ही वैश्विक राजनीति में बड़ा भूचाल आने की आशंका है.
New Delhi,Delhi
March 05, 2025, 11:18 IST
पनामा नहर: 2037314982578 रुपये खर्च, फिर कैसे 1 डॉलर में बेच दी ये तिजोरी?
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Indian-American: अवैध तो छोड़ दीजिए, वैध रूप से US में सपने सजा रहे भारतीयों पर आया बड़ा संकट, अब 100000 को भारत भेजने की तैयारी में ट्रंप

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Indian-American: अमेरिका में रह रहे भारतीयों में एक अलग खौफ पैदा हो गया है. वे लीगल रूप से तो रह रहें हैं, मगर ट्रंप सरकार की नई नीति से उनको सेल्फ डिपोर्टेशन का खतरा मंडराने लगा है. ये वे बच्चे हैं, जिनकी पैदा…और पढ़ें

अमेरिका में वैध रूप से रह रहे भारतीयों पर मंडराया नया खतरा. (रायटर्स)
हाइलाइट्स
- ट्रंप की नई नीति से भारतीयों पर संकट
- H-1B वीजा धारकों के बच्चों पर खतरा
- 1.34 लाख भारतीय बच्चों पर असर
Indian-American: विकासशील और अविकसित देशों के नागरिक अमेरिका में सपना पूरा करने की चाहत रखते हैं. वे अपना और अपने आने वाली पीढ़ी का भविष्य सुधारने की चाह रखते हैं. अपने पंख को उड़ान देने वाले लोगों की सपनों पर लगातार ट्रंप प्रशासन की कैंची चल रही है. एक तरफ जहां अवैध रूप से भारतीय लोगों को अमेरिका से निकालने का सिलसिला जारी है. अब 1 लाख से अधिक लोगों पर ट्रंप सरकार का चाबुक चलने वाला है. लोगों को डर सताने लगा है, उनका सपना चकनाचूर होते हुए दिख रहा है. एक वीजा का नाम सुना होगा आपने H-1B वीज़ा.
जी वहीं एक वीजा का नाम सुना होगा आपने H-1B वीज़ा. जी यहीं, वीजा जो अमेरिका में काम करने के लिए लोगों के लिए जरूरी होता है और लाखों लोगों का अमेरिका में नौकरी करने के लिए इसे पाना एक सपना होता है, जो उनको अमेरिका में वैध तरीके से घुसने में मदद करता है, फिर वे यहां काम करते करते बस जाने की सपना देखते हैं, भविष्य में उनके बीवी बच्चे अमेरिका के नागरिक हो जाते हैं. अब ट्रंप की सरकार ने उसी नियम को खत्म कर दिया है, जिससे लाखों लोगों पर डिपोर्ट या खुद से अपने वतन लौटने का खतरा मंडराने लगा है
H-1B वीजा वाले लोगों के बच्चों पर मंडराया खतरा
जी हां, सही पढ़ रहे हैं. वैध रूप से अमेरिका में रह लोगों की नागरिकता पर खतरा मंडराने लगी है. दरअसल, अमेरिका का H-1B वीज़ा, विदेशी नागरिकों को काम करने की अनुमति देता है. यह एक गैर-आप्रवासी वीजा है. अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद से वीजा और प्रवासियों को लेकर नियमों में कई तरह के बदलाव किए गए हैं. इनके दूसरे कार्यकाल से पहले एक नियम हुआ करता था. इसके तहत अमेरिका में H-1B वीज़ा धारकों के बच्चों का आश्रित माना जाता था, या दूसरी भाषा में समझे तो अमेरिका की धरती पर जन्म लेने वाले बच्चे, नियमतः अमेरिका के नागरिक हो जाते थे. मगर ट्रंप ने आते ही यानी कि उन्हें NRI माता-पिता (H-4 वीजा धारकों) का आश्रित वाले प्रावधान को खत्म कर दिया है. अब उनको आश्रित नहीं माना जा सकता.
नियमों में हो गया बदलाव
दरअसल, अमेरिकी कानून के अनुसार, एनआरआई के आश्रितों को उनकी ‘आयु सीमा’ के बाद नया वीजा स्टेटस चुनने के लिए दो साल का समय दिया था. लेकिन हाल ही में आव्रजन नियमों और अदालती मामलों में हुए बदलावों ने उन्हें इस प्रावधान के खत्म होने की चिंता में डाल दिया है. अब उनको डर सताने लगा है कि भारत में ‘स्व-निर्वासन’ के लिए मजबूर होना पड़ेगा, एक ऐसा देश जिससे वे शायद ही परिचित हों या फिर उनको अमेरिका में ‘बाहरी’ के रूप में रहना पड़ सकता है.
1.34 लाख पर गिर सकता है गाज
आपको जानकार हैरानी होगी कि ऐसे लोगों की संख्या एक लाख से भी ज्यादा है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2023 के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 1.34 लाख भारतीय बच्चों के आश्रित वीजा स्टेटस की उम्र सीमा समाप्त होने से पहले उनके परिवारों को ग्रीन कार्ड मिलने की उम्मीद थी.
वर्क परमिट पर रोक
टेक्सास में हाल ही में एक अदालत के फैसले ने डिफर्ड एक्शन फॉर चाइल्डहुड अराइवल्स (DACA) के तहत नए आवेदकों को वर्क परमिट देने से रोक दिया है, जिससे लोगों के बीच डर का माहौल बन चुका है. DACA उन अप्रवासियों को निर्वासन से दो साल की अस्थायी सुरक्षा प्रदान करता है, जिनके पास कोई दस्तावेज़ नहीं है, जिनमें बच्चे भी शामिल हैं, जो 21 वर्ष की आयु के बाद अपने माता-पिता के आश्रित के रूप में अपनी स्थिति के लिए अयोग्य हो जाते हैं. भारतीय युवाओं को डर है कि वे अनिश्चितता में फंस सकते हैं. समस्या को और भी जटिल बनाने वाली बात यह है कि माता-पिता ग्रीन कार्ड के लिए 12 साल से 100 साल तक के वेटिंग लिस्ट में है.
March 06, 2025, 07:21 IST
अवैध तो छोड़ दीजिए, वैध रूप से US में रहे रहे 100000 भारतीयों पर आया नया संकट
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यही है वह आतंकी, जिसके इंतजार में था अमेरिका, शरीफुल्लाह ने कोर्ट में की ऐसी मांग, जज ने तुरंत कर दी पूरी

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US News: अमेरिका ने अफगानिस्तान से आतंकी शरीफुल्लाह को पकड़ा. अब उसे अमेरिका की अदालत में पेश किया गया. वह अमेरिकी सैनिकों की मौत का जिम्मेदार है. उसे वर्जीनिया की अदालत में पेश किया गया. अगली सुनवाई सोमवार को …और पढ़ें

अमेरिका अपने दुश्मन को घसीटकर ले आया है.
हाइलाइट्स
- अमेरिका ने आतंकी शरीफुल्लाह को अफगानिस्तान से पकड़ा.
- शरीफुल्लाह को वर्जीनिया की अदालत में पेश किया गया.
- अगली सुनवाई सोमवार को होगी.
अमेरिका को जिसकी तलाश थी, वह पूरी हो गई. अमेरिका का चार साल पुराना इंतजार खत्म हो गया. यह अब अमेरिकी के जख्म पर मरहम का काम करेगा.जी हां, अमेरिकी एजेंसियों ने जिस आतंकी को अफगानिस्तान से पकड़ा है, वह अमेरिका की धरती पर पहुंच चुका है. अफगानिस्तान के एबी गेट पर अमेरिकी सैनिकों की मौत का जिम्मेदार आतंकवादी शरीफुल्लाह बुधवार शाम अमरीका पहुंचा. यहां उसे वर्जीनिया की अलेक्जेंड्रिया स्थित संघीय अदालत में पेश किया गया. अमेरिका ने पहली बार उसकी तस्वीर भी जारी की है.
अदालत में आतंकी शरीफुल्लाह को जज विलियम पोर्टर के सामने पेश किया गय. इस दौरान आतंकी शरीफुल्लाह ने ने बताया कि उसे अमेरिका में बोली जाने वाली भाषा समझ में नहीं आती. इसके बाद उसे दारी भाषा बोलने वाले दुभाषिया की मदद प्रदान की गई. कोर्ट में सुनवाई के दौरान आतंकवादी नीली वर्दी में था. उसके चेहरे पर फेस मास्क था. उसके साथ बड़ी संख्या में एफबीआई के एजेंट और सुरक्षा गार्ड थे. जज विलियम पोर्टर ने शरीफुल्लाहल और अमेरिकी सरकार की दलील सुनी. अदालत ने शरीफुल्लाह को उसके खिलाफ लगे आरोप बताए. इसके बाद उसे अगली सुनवाई तक हिरासत में रखने के आदेश जारी किया. उसकी अगली सुनवाई सोमवार की दोपहर होगी.
खुफिया रिपोर्ट क्या कहती है
खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, शरीफुल्लाह को जफर, नासेर और अजमल के नाम से भी जाना जाता है. वह काबुल में कम से कम 29 आत्मघाती बम विस्फोट और कई आतंकवादी हमलों को अंजाम देने और उसकी योजना बनाने में शामिल था. शरीफुल्ला पर प्रारंभिक जांच के बाद यह आरोप लगाया गया है कि उसने काबुल एयरपोर्ट पर एबी गेट अटैक में मुख्य भूमिका निभाई. वह अफगान राष्ट्रपति महल और अमेरिकी दूतावास पर रॉकेट हमलों सहित अन्य हमलों में शामिल था. शरीफुल्लाह आईएसआईएस-के की काबुल कतिबा इकाई का हिस्सा था.
कब हुआ रिहा
वह आईएसआईएस-के (खुरासान) नेता शहाब अल-मुहाजिर का करीबी था. उसे पहले अगस्त 2019 में पिछली अफगान गुप्त एजेंसी एनडीएस ने गिरफ्तार किया था. लेकिन जब अगस्त 2021 में तालिबान ने काबुल पर नियंत्रण कर लिया तो उसे बगराम जेल से रिहा कर दिया गया. इसके ऊपर ही आरोप है कि उसकी वजह से ही 2021 में काबुल अटैक में अमेरिका के 13 सैनिकों की मौत हुई थी.
शरीफुल्लाह की कुंडली और पाक की मदद
शरीफुल्लाह को ISIS में जफर के अलावा इंजीनियर शरीफ और अजमल के नाम से भी जाना जाता था. आतंकवादी संगठन आईएसआईएस खुरासन प्रोविंस में जब वह सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रहा था, तब वह इशाकजई नाम से टेलीग्राम अकाउंट के जरिए अपने मातहतों का नेतृत्व कर रहा था. बताया गया कि उसकी गिरफ्तारी में पाकिस्तान ने बड़ी मदद की है. तभी डोनाल्ड ट्रंप ने कांग्रेस को संबोधित करते वक्त उसकी तारीफ की. बहरहाल, सोमवार को उसे फिर से अमेरिकी कोर्ट के सामने पेश किया जाएगा.
Delhi,Delhi,Delhi
March 06, 2025, 08:31 IST
यही है वह आतंकी, जिसके इंतजार में था US, अदालत में की ऐसी मांग, तुरंत हुई पूरी
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