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दुर्लभ पौधा, जहां लगा होगा..वहां लक्ष्मी को आना ही पड़ेगा, अमीर बना देगा! कई रोगों में भी कारगर

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Dhanvantari Plant Benefits: धरती पर धन्वंतरि नाम का पौधा भी है. देखने में गुलदस्ता जैसा यह पौधा मां लक्ष्मी का घर भी है. मान्यता है कि ये पौधा जहां होता है, वहां लक्ष्मी का वास होता है. हालांकि, इस पौधे के साथ …और पढ़ें

दुर्लभ धन्वंतरि का पौधा.
हाइलाइट्स
- धन्वंतरि पौधा दुर्लभ और औषधीय गुणों वाला है
- इसे घर में लगाने से सुख-समृद्धि आती है
- इसके पत्ते खाने से कई रोगों में राहत मिलती है
सागर: प्रकृति की गोद में कई औषधीय गुणों वाले पौधे हैं, जिनमें से बहुतों का नाम भी लोग नहीं जानते. ऐसा ही एक पौधा धन्वंतरि का है. यह पौधा बेहद ही कम जगह पर देखने को मिलता है. क्योंकि, इसे उगाने के बाद इसका ख्याल रखना बेहद कठिन है. इसे धरती पर दुर्लभ पौधा भी कहा जाता है.
गुलदस्ते की तरह दिखने वाला ये औषधीय पौधा केवल रोग दूर नहीं करता, बल्कि घर में आने वाले दुख-दर्द को भी दूर करता है. माना जाता है कि इस पौधे को घर में लगाने से सुख समृद्धि आती है. माता लक्ष्मी की कृपा घर में सदैव बनी रहती है. इस पौधे का लाखों वर्ष पहले हुए समुद्र मंथन से भी संबंध है.
समुद्र मंथन से निकला था पौधा
बुजुर्ग दादी मां द्रौपदी बाई कहती हैं कि देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन किया था. उस समय बेहद कीमती कई चीजें निकली थीं. इसमें लक्ष्मी जी के साथ ही इस पेड़ की भी उत्पत्ति मानी जाती है. इसलिए, जहां पर यह पौधा लगा होता है, वहां लक्ष्मी का वास भी होता है. इसकी रोजाना पूजा भी की जाती है. समुद्र मंथन के समय धन्वंतरि भगवान इसे खुद अपने साथ लेकर आए थे, इसलिए इसका नाम धन्वंतरि है.
फल नहीं, इसके पत्ते खाए जाते हैं
दादी ने आगे बताया, इसे घर में दरवाजे के सामने लगाया जाता है. इस पौधे के फल नहीं पत्ते खाए जाते हैं. कार्तिक के महीने से इसमें पत्ते आना शुरू हो जाते हैं, जो पूरी सर्दी और पूरी गर्मी लगभग 8 महीने तक रहते हैं. गर्मी में जब किसी को सीने में जलन पड़ती है तो इन पत्तों को चटनी बनाकर खाने से राहत मिलती है. कोई कोई टमाटर के साथ चटनी बना लेता है. अन्य तरह के रोगों में भी यह चलता है. इसके अलावा यह गर्मी में शरीर को ठंडा रखने में मदद करता है.
(Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी और तथ्य विशेषज्ञ से बातचीत व मान्यताओं के आधार पर हैं. Local 18 इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
Sagar,Madhya Pradesh
March 11, 2025, 11:03 IST
दुर्लभ पौधा, जहां लगा होगा..वहां लक्ष्मी को आना ही पड़ेगा, अमीर बना देगा!
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घर से बर्गर खाने निकला था शख्स, लौट कर आया तो हो चुका था करोड़पति, खुल गई किस्मत!

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ब्रिटेन के क्रैग हैगी केवल बर्गर खरीदने के लिए निकले थे. बर्गर खरीदते समय यूं ही नेशनल लॉटरी स्क्रैचकार्ड खरीदा. लेकिन उन्हें उम्मीद नहीं थी कि वे विजेता निकलेंगे. उन्होंने 11 करोड़ 26 लाख रुपये जीत लिए.

क्रैग ने लॉटरी केवल समय बिताने के लिए यूं ही खरीद ली थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
लाटरी के पीछे लाखों लोगों ने अपनी जिंदगी बरबाद की है. दुनिया के कई देश, यहां तक कि भारत के कई राज्यों में भी इसी वजह से लाटरी पूरी तरह से बैन है. ऐसे में कई कहानियां सुनने को मिलती हैं जिसमें कोई शख्स अचानक ही लॉटरी जीत कर करोड़पति बन जाता है. ब्रिटेन के एक शख्स के साथ ऐसा ही हुआ जब वे घर तो बर्गर खरीदने ही निकला था, लेकिन जब लौटा तो करोड़ों की लाटरी का विजेता बन कर लौटा जिसकी उसे कतई उम्मीद नहीं थी.
यूं ही खरीद लिया था कार्ड
कॉर्नवॉल के लिस्कियार्ड के रहने वाले 36 साल के क्रैग हैगी ने अपने लंच का इंतजार करते समय केवल वक्त काटने के लिए नेशनल लॉटरी स्क्रैचकार्ड खरीद लिया था. उन्हें बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि यह छोटी से घटना उनकी जिंदगी बदल देगी. जैसे ही उन्हें पता चला कि उन्होंने नेशनल लॉटरी कैश वॉल्ट स्क्रैचकार्ड की 10 लाख पाउंड यानी 11 करोड़ 26 लाख रुपये जीत लिए, उन्हें यकीन ही नहीं हुआ.
टिकट खोने का डर
स्पार से कार्ड खरीदने वाले चार बच्चों के पिता क्रैग, अपने भाई निक के साथ परिवार का डब्ल्यूसीएल स्टोरेज सिस्टम्स चलाते हैं जिसके वे मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. वैसे तो उन्होंने उम्मीद नहीं की थी कि वे लॉटरी जीत जाएंगे या अपनी किस्मत आजमाने के लिए उसे नहीं खरीदा था. लेकिन जीतने के बाद वे टिकट खोने के डर इतने चिंतित हो गए कि उन्होंने उसे शरीर पर ही चिपका लिया.

क्रैग के सामने चुनौती थी कि आखिर वे लाटरी के टिकट संभालकर कहां रखें. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Canva)
कहां छिपाया कार्ड
क्रैग ने बताया कि उन्होंने पहले टिकट को पन्नी में रख कर शरीर पर टेप से चिपका लिया, लेकिन पसीने की वजह से ज्यादा देर शरीर पर चिपका नहीं रह पाया, तब जा कर उन्होंने उसे किचन कैबिनेट में रखे सॉसपैन के अंदर रखा. उन्होंने खुद बताया कि जब आपको पता चले कि आप करोड़ पति हो गए हैं तो आप सीधा नहीं सोच पाते हैं.
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क्रैग ने अपनी पत्नी जोये को जब लाटरी की जीत की खबर दी तो उन्हें लगा कि उनका पति उनके साथ मजाक कर रहा है. उन्हें लगता है कि अभी उनकी बहुत लंबी है इसलिए वे और उनके पति अभी अपना काम छोड़ने की स्थिति में नहीं हैं. परिवार अब प्लानिंग कर रहा है कि जीती हुई रकम का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं.
March 15, 2025, 08:51 IST
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सालों से अंतरिक्ष में जाकर लौट रहा है ये स्पेसशिप, किसी को नहीं पता, आखिर करता क्या है ये?

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दुनिया की निगाहें एलन मस्क के रीयूजेबल स्पेसशिप और रॉकेट के परीक्षणों पर रहती है. वहीं अमेरिका का X-37B स्पेसक्राफ्ट पूरी तरह से रीयूजेबल और हाल ही में उसने 434 दिन बाद स्पेस से लौट कर धरती पर विमान की तरह लैं…और पढ़ें

यह यान रॉकेट से स्पेस भेजा जाता है और विमान की तरह लैंडिंग करता है. (तस्वीर: Instagram)
हाइलाइट्स
- अमेरिका का X-37B स्पेसक्राफ्ट 434 दिन बाद लौटा
- X-37B पूरी तरह से रीयूजेबल और रहस्यमयी है
- इसका उपयोग सैन्य निगरानी और गोपनीय प्रयोगों के लिए होता है
एलन मस्क ऐसी स्पेसशिप तैयार कर रहे हैं जो स्पेस में जा कर पृथ्वी पर वापस आ जाए और उसका फिर से इस्तेमाल हो सके. ऐसे रीयूजेबल रॉकेट पर कई प्रयोग हो चुके हैं जिनमें से कुछ पूरे सफल भी रहे हैं. पर क्या आप जानते हैं कि अमेरिका के पास सालों से एक ऐसी स्पेस शिप भी है जो कई बार स्पेस में जा कर वापस आ चुकी है. हाल ही में ये स्पेसशिप 434 दिन बाद लौटी है. हैरानी की बात ये है कि दुनिया में बहुत से लोग यह तो जानते हैं कि इस तरह कि खास स्पेसशिप अमेरिका के पास है, पर यह कोई नहीं जानता कि अमेरिका इसका करता क्या है.
नहीं करता है की इसकी चर्चा
लेकिन ऐसा नहीं है कि इस यान की कभी चर्चा नहीं होती है. जब इसकी लॉचिंग होती है तब यह सुर्खियों में जरूर आता है. अमेरिकी सरकार इसे स्पेस एक्सपेरिमेंट के लिए उपयोग में लाना वाला यान बताती है, इससे अधिक नहीं. एक्सपर्ट्स भी बताते हैं कि इसके कई सैन्य उपयोग हैं पर इससे अधिक यह पूरी दुनिया के लिए रहस्मयी और अमेरिकी सरकार के लिए क्लासिफाइड ही है.
पहले भी रहा है चर्चा में
यह अनूठी स्पेसशिप या स्पेसक्राफ्ट X-37B ऑर्बिटल टेस्ट व्हीकल -7 है. हाल ही में ये कैलिफोर्निया के वेंडनबर्ग स्पेस फोर्स बेस में लैंडिंग कर लौटा है. कुछ महीनों पहले यह इस बात के लिए चर्चा में था कि यान ने अंतरिक्ष में रह कर खुद ब खुद ही पृथ्वी का चक्कर लगाने वाली अपनी कक्षा में सफल बदलाव किया था. वैज्ञानिक इसे “एरोब्रेकिंग मैनोवर” कहते हैं.
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जापान और इंडोनेशिया के वैज्ञानिकों ने बनाया सुपर कॉकरोच- Scientists gave superpowers of navigation to cockroaches they became cyborgs what is purpose of scientists behind this

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जापान और इंडोनेशिया के वैज्ञानिकों ने मिलकर छोटे से जीव को एक ऐसी महाशक्ति दी है, जिससे वो सुपर कॉकरोच बन गया. इस पीछे वैज्ञानिकों का खास मकसद है. उनका मानना है कि तिलचट्टों के चपटे शरीर ऐसी जगहों पर भी जा सकते…और पढ़ें

कुछ ऐसा दिखेगा कॉकरोच साइबॉर्ग (Photo Credit- मोचम्माद अरियान्टो)
जापान में ओसाका विश्वविद्यालय और इंडोनेशिया में डिपोनेगोरो विश्वविद्यालय की एक टीम ने कॉकरोच जैसे छोटे से जीव को एक ऐसी महाशक्ति दी है, जिससे वो सुपर कॉकरोच बन जाएंगे. वैज्ञानिको ने कॉकरोच को नेविगेशन से लैस कर दिया है. उनके शरीर पर कृत्रिम रचना का निर्माण कर दिया, जिससे वो साइबॉर्ग में बदल गए. वैज्ञानिकों का मानना है कि तिलचट्टों के चपटे शरीर ऐसी जगहों पर भी जा सकते हैं, जहां कोई इंसान नहीं जा सकता. इसके अलावा ये कोई निशान भी नहीं छोड़ते और बिना कुछ खाए लंबे समय तक जिंदा रह सकते हैं. ये सभी गुण उन्हें खोज और बचाव अभियानों के लिए एकदम सही बनाते हैं. साइंटिस्ट्स को उम्मीद है कि इन बग-बॉट्स का इस्तेमाल युद्ध और प्राकृतिक आपदा के बाद छोड़े गए खतरनाक मलबे का निरीक्षण करने और यहां तक कि मुसीबत में फंसे बचे लोगों और बचावकर्मियों का पता लगाने के लिए किया जा सकता है.
इस रिसर्च में शामिल वैज्ञानिकों का मानना है कि कॉकरोच को साइबॉर्ग्स में बदल देने से कुछ इलेक्ट्रॉनिक संकेतों द्वारा मानव द्वारा चुने गए लक्ष्य स्थान तक निर्देशित की जा सकती है. इसमें लाखों वर्षों के विकास के दौरान विकसित की गई जैविक कॉकरोच की शारीरिक रचना मददगार साबित होगी. डिपोनेगोरो विश्वविद्यालय के मैकेनिकल इंजीनियर और प्रमुख रिसर्चर मोचामद अरियान्टो बताते हैं , “छोटे पैमाने पर एक कार्यशील रोबोट का निर्माण चुनौतीपूर्ण है; हम चीजों को सरल रखकर इस बाधा को दूर करना चाहते थे. ऐसे में कीटों पर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण लगाकर, हम रोबोटिक्स इंजीनियरिंग की छोटी-मोटी बारीकियों से बच सकते हैं और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं.” इन रिसर्चर्स का मानना है कि अगर हम छोटे से रोबोट को कमांड देंगे, तो वो हमारी कमांड फॉलो करेंगे, लेकिन सीढ़ियों से उतरने में ही वो गिरकर टूट जाएंगे. ऐसे में अगर हम छोटे रोबोट्स को कहीं विषम परिस्थिति में भेजेंगे तो उनका सही सलामत बच पाना मुश्किल होगा. लेकिन कॉकरोच के साथ ऐसा नहीं है.
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रिसर्चर्स ने आगे कहा कि एक कॉकरोच दीवारों पर चढ़ सकता है, परिधि को पार कर सकता है, पाइपों में घुस सकता है और यहां तक कि कम ऑक्सीजन वाले वातावरण को भी सहन कर सकता है. इस वजह से हमने उसे नेविगेशन की शक्ति दी. हमने रेत, पत्थरों और लकड़ी से भरे एक उबड़-खाबड़ रास्ते में बायो-हैक किए गए तिलचट्टों का परीक्षण किया. साइबॉर्ग को उसके लक्ष्य तक पहुंचने के लिए नेविगेशन कमांड का संयम से इस्तेमाल किया गया था, लेकिन इसके अलावा, उस छोटे से जीव को ज़्यादातर अपना रास्ता खुद खोजने, बाधाओं से बचने या उन पर काबू पाने और जब चीज़ें उलट-पुलट हो जाती थीं, तो खुद को सही करने की अनुमति दी गई थी. इस एल्गोरिथ्म ने तिलचट्टों के प्राकृतिक व्यवहारों (जैसे दीवार का पीछा करना और चढ़ना) का उपयोग बाधाओं के चारों ओर और ऊपर जाने के लिए किया. ओसाका विश्वविद्यालय के वेट रोबोटिक्स इंजीनियर केसुके मोरिशिमा कहते हैं , “मेरा मानना है कि हमारे साइबॉर्ग कीट विशुद्ध यांत्रिक रोबोटों की तुलना में कम प्रयास और शक्ति से अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर सकते हैं.” बेशक, यह स्पष्ट नहीं है कि तिलचट्टे इस सब के बारे में क्या महसूस करते हैं, लेकिन रोबोटों को जिन जगहों पर जाने में चुनौती होगी, उन्हें ये कॉकरोच आसानी से पार कर जाएंगे. बता दें कि यह शोध सॉफ्ट रोबोटिक्स में प्रकाशित हुआ था.
March 12, 2025, 11:53 IST
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