Connect with us

Internattional

Pakistan Train Hijack Reason; Balochistan BLA Army History Explained | ईरान के आर्यों ने बलूचिस्तान बसाया, औरंगजेब से छीना इलाका: पाकिस्तान से आजाद क्यों होना चाहते हैं बलूच, 77 साल के विद्रोह की पूरी कहानी

Published

on

इस्लामाबाद1 दिन पहलेलेखक: संजय झा

  • कॉपी लिंक
पाकिस्तान का कब्जा होने के बाद से बलूचिस्तान में 5 बड़े विद्रोह हुए हैं। सबसे ताजा विद्रोह 2005 में शुरू हुआ था, जो आज भी जारी है। - Dainik Bhaskar

पाकिस्तान का कब्जा होने के बाद से बलूचिस्तान में 5 बड़े विद्रोह हुए हैं। सबसे ताजा विद्रोह 2005 में शुरू हुआ था, जो आज भी जारी है।

साल 1540 की बात है, भारत के पहले मुगल शासक बाबर के बेटे हुमायूं को बिहार के शेरशाह सूरी ने युद्ध में हरा दिया। हुमायूं भारत से भाग खड़ा हुआ। उसने फारस यानी ईरान में शरण ली। 1545 में शेरशाह सूरी की मौत हो गई।

मौके को भांपकर हुमायूं ने भारत वापस लौटने की योजना बनाना शुरू कर दिया। तब बलूचिस्तान के कबीलाई सरदारों ने उसके इस प्लान में मदद की। बलूचों का साथ पाकर 1555 में हुमायूं ने दिल्ली पर फिर से नियंत्रण कर लिया।

साल 1659। मुगल बादशाह औरंगजेब दिल्ली का शासक बना। उसकी सत्ता पश्चिम में ईरान के बॉर्डर तक थी, लेकिन दक्षिण में उसे लगातार मराठों की चुनौतियों से जूझना पड़ रहा था।

तब बलूची सरदारों ने मुगल हुकूमत के खिलाफ विद्रोह छेड़ा और बलूच लीडर मीर अहमद ने 1666 में बलूचिस्तान के दो इलाकों- कलात और क्वेटा को औरंगजेब से छीन लिया।

बलूचों का इतिहास ऐसे किस्से-कहानियों से भरा पड़ा है… अपने गुरिल्ला युद्ध कौशल और लड़ाकू स्वभाव के लिए जाने जाने वाले बलूच आखिर कौन हैं और ये पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष क्यों कर रहे हैं, जानेंगे इस स्टोरी में…

बलूचिस्तान का इतिहास 9 हजार साल पुराना

आज जहां बलूचिस्तान है, उस जगह का इतिहास करीब 9 हजार साल पुराना है। तब यहां मेहरगढ़ हुआ करता था। ये सिंधु सभ्यता का एक प्रमुख शहर था। लगभग 3 हजार साल पहले जब सिंधु सभ्यता का अंत हुआ तो यहां के लोग सिंध और पंजाब के इलाके में बस गए। इसके बाद ये शहर वैदिक सभ्यता के प्रभाव में आया।

यहां पर हिंदुओं की प्रमुख शक्तिपीठ में से एक- हिंगलाज माता का मंदिर भी है, जिसे पाकिस्तान में नानी का हज भी कहा जाता है। समय के साथ ये शहर बौद्ध धर्म का भी एक प्रमुख केंद्र बना। सातवीं सदी में जब अरब हमलावरों ने इस इलाके पर हमला किया, तो यहां पर इस्लाम धर्म का प्रभाव बढ़ा।

बलूच पाकिस्तान में कैसे आकर बसे, इसे लेकर दो थ्योरी…

पहली थ्योरी: लोक कथाओं के मुताबिक

बलूचिस्तान की कलात रियासत के आखिरी शासक मीर अहमद यार खान ने अपनी किताब ‘इनसाइड बलूचिस्तान’ में लिखा है कि बलूच लोग खुद को पैगंबर इब्राहिम का वंशज मानते हैं। वे सीरिया के इलाके में रहते थे। यहां बारिश की कमी और अकाल वजह से इन लोगों ने पलायन करना शुरू कर दिया।

सीरिया से निकल कर इन लोगों ने ईरान के इलाके में डेरा डाला। यह बात तब के ईरानी राजा नुशेरवान को पसंद नहीं आई और उन्होंने इन लोगों को यहां से खदेड़ दिया। इसके बाद ये लोग उस इलाके में पहुंचे, जिसे बाद में बलूचिस्तान का नाम दिया गया।

जिस वक्त बलूच ईरान से चले थे, तब उनके सरदार मीर इब्राहिम थे। जब वे बलूचिस्तान पहुंचे तो उनकी जगह मीर कम्बर अली खान ने ले ली। इस कबीले को पैगंबर इब्राहिम के नाम पर ब्राहिमी कहा गया, जो बाद में ब्रावी या ब्रोही बन गया।

हिंदू राजवंश को हटाने में बलूचों ने मुगलों की मदद की

बलूच लोग इस इलाके में बस गए। कई सौ साल बाद जब हिंदुस्तान में मुगलों का शासन हुआ, तो वे बलूच लोगों के सहयोगी बन गए। इस दौरान बलूचिस्तान के कलात इलाके में सेवा (Sewa) वंश का शासन था, जिसे एक हिंदू राजवंश माना जाता है। इस राजवंश की एक प्रसिद्ध शासक रानी सेवी (Rani Sewi) थीं, जिनके नाम पर बाद में सिबि (Sibi) क्षेत्र का नाम पड़ा।

सेवा वंश का शासन मुख्य रूप से कलात और उसके आसपास के क्षेत्रों में था और यह राजवंश उस समय हिंदू परंपराओं का पालन करता था। भारत के मुगल शासक अकबर ने 1570 के दशक में बलूचों की मदद से कलात पर हमला किया और सेवा राजवंश से इसका नियंत्रण छीन लिया।

17वीं सदी के बीच में मुगलों की पकड़ कमजोर होने लगी और बलूच जनजातियों ने विद्रोह करना शुरू कर दिया। 18वीं सदी तक मुगलों ने यहां शासन किया, लेकिन बलूचों ने उन्हें यहां से खदेड़ दिया। यहां से बलूचों ने कलात में अपनी रियासत की बुनियाद रखी और बलूचिस्तान में बलूचों का शासन शुरू हुआ।

सिबि में बलूच सरदार मीर चाकर खान रिंद का किला। मीर चाकर ने शेरशाह सूरी के खिलाफ हुमायूं की मदद की थी।

सिबि में बलूच सरदार मीर चाकर खान रिंद का किला। मीर चाकर ने शेरशाह सूरी के खिलाफ हुमायूं की मदद की थी।

दूसरी थ्योरी: इतिहासकारों के मुताबिक

इतिहासकार कहते हैं कि बलूच लोग इंडो-ईरानी लोगों के ज्यादा करीब हैं, बजाय सीरिया के अरबी लोगों के। इंडो ईरानी लोगों को आर्यन भी कहा जाता है। इस लिहाज से इतिहासकारों को लगता है कि बलूच भी आर्यन हैं। आर्य हजारों साल पहले सेंट्रल एशिया में रहते थे, लेकिन खराब मौसम और युद्ध के हालात के चलते वहां से दूसरी जगह की तलाश में निकले।

वहां से निकलकर पहले आर्मेनिया और अजरबैजान पहुंचे। वे अजरबैजान के ब्लासगान इलाके में रहने लगे। यहां आर्यों की भाषा और लहजा मिलाकर नई जुबान बनाई गई, जिसे बलशक या बलाशोकी नाम दिया गया। आर्यों को बलाश कहा जाने लगा।

ईसा से 550 साल पहले अजरबैजान ईरान के खाम साम्राज्य के कब्जे में आ गया। 224-651 ईस्वी में सासानी साम्राज्य स्थापित हुआ। छठी सदी के आखिर में और सातवीं सदी की शुरुआत में इस इलाके में बाहर से हमले बढ़ गए और मौसम भी खराब रहने लगा। तो सेंट्रल एशिया से यहां आकर बसे आर्य अलग-अलग इलाकों में जा बसे।

कुछ लोग ईरान के जनूबी (दक्षिण) चले गए और कुछ लोग ईरान के मगरिब (पश्चिम) चले गए। जनूबी की तरफ गए आर्य वहां से और आगे ईरान के कमान और सीस्तान पहुंच गए। यहां इनका नाम बदल कर बलाश से बलूच और बोली का नाम बलाशोकी से बदल कर बलूची हो गया। धीरे-धीरे इन बलूच लोगों ने सीस्तान से आगे के इलाके में दाखिल होते गए। इसी इलाके को बाद में बलूचिस्तान कहा गया।

पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है बलूचिस्तान

बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है और 44 फीसदी हिस्सा कवर करता है। जर्मनी के आकार का होने का बावजूद यहां की आबादी सिर्फ डेढ़ करोड़ है, जर्मनी से 7 करोड़ कम।

बलूचिस्तान तेल, सोना, तांबा और अन्य खदानों से सम्पन्न है। इन संसाधनों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान अपनी जरूरतें पूरी करता है। इसके बाद भी ये इलाका सबसे पिछड़ा है।

यही वजह है कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान के खिलाफ नफरत बढ़ रही है। पाकिस्तान का कब्जा होने के बाद से बलूचिस्तान में 5 बड़े विद्रोह हुए हैं। सबसे हालिया विद्रोह 2005 में शुरू हुआ था जो आज भी जारी है।

आधुनिक बलूचिस्तान का इतिहास 150 साल पुराना

आधुनिक बलूचिस्तान की कहानी 1876 से शुरू होती है। तब बलूचिस्तान पर कलात रियासत का शासन था। भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश हुकूमत शासन कर रही थी। इसी साल ब्रिटिश सरकार और कलात के बीच संधि हुई।

संधि के मुताबिक अंग्रेजों ने कलात को सिक्किम और भूटान की तरह प्रोटेक्टोरेट स्टेट का दर्जा दिया। यानी भूटान और सिक्किम की तरह कलात के आंतरिक मामलों में ब्रिटिश सरकार का दखल नहीं था, लेकिन विदेश और रक्षा मामलों पर उसका नियंत्रण था।

मोहम्मद अली जिन्ना के साथ कलात के शासक मीर अहमद खान।

मोहम्मद अली जिन्ना के साथ कलात के शासक मीर अहमद खान।

भारत की तरह कलात में भी आजादी की मांग तेज हुई

1947 में भारतीय उपमहाद्वीप में आजादी की प्रक्रिया की शुरुआत हुई। भारत और पाकिस्तान की तरह कलात में भी आजादी की मांग तेज हो गई। जब 1946 में ये तय हो गया कि अंग्रेज भारत छोड़ रहे हैं, तब कलात के खान यानी शासक मीर अहमद खान ने अंग्रेजों के सामने अपना पक्ष रखने के लिए मोहम्मद अली जिन्ना को सरकारी वकील बनाया।

बलूचिस्तान नाम से एक नया देश बनाने के लिए 4 अगस्त 1947 को दिल्ली में एक बैठक बुलाई गई। इसमें मीर अहमद खान के साथ जिन्ना और जवाहर लाल नेहरू भी शामिल हुए। बैठक में जिन्ना ने कलात की आजादी की वकालत की।

बैठक में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भी माना कि कलात को भारत या पाकिस्तान का हिस्सा बनने की जरूरत नहीं है। तब जिन्ना ने ही ये सुझाव दिया कि चार जिलों- कलात, खरान, लास बेला और मकरान को मिलाकर एक आजाद बलूचिस्तान बनाया जाए।

बलूचिस्तान का झंडा लहराते स्थानीय। बलूचिस्तान में 11 अगस्त को आजादी का दिवस मनाया जाता है।

बलूचिस्तान का झंडा लहराते स्थानीय। बलूचिस्तान में 11 अगस्त को आजादी का दिवस मनाया जाता है।

11 अगस्त को बलूचिस्तान अलग देश बना, ब्रिटेन ने लगाया अड़ंगा

11 अगस्त 1947 को कलात और मुस्लिम लीग के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इसके साथ ही बलूचिस्तान एक अलग देश बन गया। हालांकि इसमें एक पेंच ये था कि बलूचिस्तान की सुरक्षा पाकिस्तान के हवाले थी।

आखिरकार कलात के खान ने 12 अगस्त को बलूचिस्तान को एक आजाद देश घोषित कर दिया। बलूचिस्तान में मस्जिद से कलात का पारंपरिक झंडा फहराया गया। कलात के शासक मीर अहमद खान के नाम पर खुतबा पढ़ा गया।

लेकिन आजादी घोषित करने के ठीक एक महीने बाद 12 सितंबर को ब्रिटेन ने एक प्रस्ताव पारित किया और कहा कि बलूचिस्तान एक अलग देश बनने की हालत में नहीं है। वह अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां नहीं उठा सकता।

अपनी ही बात से पलटे जिन्ना, विलय का दिया प्रस्ताव

कलात के खान ने अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान का दौरा किया। उन्हें उम्मीद थी कि जिन्ना उनकी मदद करेंगे। जब खान कराची पहुंचे तो वहां मौजूद हजारों बलूच लोगों ने उनका स्वागत बलूचिस्तान के राजा की तरह किया, लेकिन उनका स्वागत करने पाकिस्तान का कोई बड़ा अधिकारी नहीं पहुंचा।

पाकिस्तान के इरादे में बदलाव का यह बड़ा संकेत था। अपनी किताब ‘बलूच राष्ट्रवाद’ में ताज मोहम्मद ब्रेसीग ने जिन्ना और खान के बीच बैठक का जिक्र किया है। बैठक में जिन्ना ने खान से बलूचिस्तान का पाकिस्तान में विलय करने की बात कही।

कलात के शासक ने बात नहीं मानी। उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान कई जनजातियों में बंटा देश है। वह अकेले यह तय नहीं कर सकते। बलूचिस्तान आजाद मुल्क रहेगा या पाकिस्तान के साथ जाएगा ये वहां की जनता तय करेगी।

वादे के मुताबिक खान ने बलूचिस्तान जाकर विधानसभा की बैठक बुलाई जिसमें पाकिस्तान से विलय का विरोध किया गया। पाकिस्तान का दबाव बढ़ने लगा था। मामले को समझते हुए खान ने कमांडर-इन-चीफ ब्रिगेडियर जनरल परवेज को सेना जुटाने और हथियार गोला-बारूद की व्यवस्था करने को कहा।

कलात के शासक मीर अहमद खान (दाएं) जिन्ना से मदद मांगने के लिए पाकिस्तान पहुंचे, लेकिन उन्होंने उनकी कोई मदद नहीं की।

कलात के शासक मीर अहमद खान (दाएं) जिन्ना से मदद मांगने के लिए पाकिस्तान पहुंचे, लेकिन उन्होंने उनकी कोई मदद नहीं की।

ब्रिटेन ने कलात को सैन्य सहायता देने से इनकार किया

जनरल परवेज हथियार हासिल करने के लिए दिसंबर 1947 में लंदन पहुंचे। ब्रिटिश सरकार ने कहा कि पाकिस्तान की मंजूरी के बिना उन्हें कोई सैन्य सहायता नहीं मिलेगी।

जिन्ना मामले को भांप गए थे। उन्होंने 18 मार्च 1948 को खारन, लास बेला और मकरान को अलग करने की घोषणा की। दुश्का एच सैय्यद ने अपनी किताब ‘द एक्सेशन ऑफ कलात: मिथ एंड रियलिटी’ में लिखा है कि जिन्ना के एक फैसले से कलात चारों तरफ से घिर गया।

जिन्ना ने कई बलूच सरदारों को अपनी तरफ मिला लिया, जिससे खान के पास कोई चारा नहीं रहा। इसके बाद खान ने भारतीय अधिकारियों और अफगान शासक से मदद के लिए अनुरोध किया, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली।

27 मार्च, 1948 को ऑल इंडिया रेडियो ने राज्य विभाग के सचिव वी.पी. मेनन के हवाले से कहा कि कलात के खान ने भारत से विलय के लिए संपर्क किया था, लेकिन भारत सरकार ने ये मांग ठुकरा दी। हालांकि बाद में तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल और फिर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस बयान का खंडन किया।

227 दिन आजाद रहा बलूचिस्तान, शुरू हुआ विद्रोह

26 मार्च को पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान में घुस गई। अब खान के पास जिन्ना की शर्तें मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, लेकिन इस कब्जे से बलूचिस्तान की एक बड़ी आबादी के मन में पाकिस्तान के लिए नफरत पैदा हो गई। बलूचिस्तान सिर्फ 227 दिनों तक ही आजाद देश बना रह सका।

इसके बाद खान के भाई प्रिंस करीम खान ने बलूच राष्ट्रवादियों का एक दस्ता तैयार किया। उन्होंने 1948 में पाकिस्तान के खिलाफ पहला विद्रोह शुरू किया। पाकिस्तान ने 1948 के विद्रोह को कुचल दिया। करीम खान समेत कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया।

विद्रोह को तब भले ही दबा दिया गया, लेकिन ये कभी खत्म नहीं हुआ। बलूचिस्तान की आजादी के लिए शुरू हुए इस विद्रोह को नए नेता मिलते रहे। 1950, 1960 और 1970 के दशक में वे पाकिस्तान सरकार के लिए चुनौती बनते रहे। 2000 तक पाकिस्तान के खिलाफ चार बलूच विद्रोह हुए।

रेप की एक घटना के बाद शुरू हुआ पांचवां विद्रोह

2005 में 2 और 3 जनवरी की दरम्यानी रात थी। बलूचिस्तान के सुई इलाके में पाकिस्तान पेट्रोलियम लिमिटेड अस्पताल में काम करने वाली एक महिला डॉक्टर शाजिया खालिद अपने कमरे में सो रही थी। तभी एक पाकिस्तानी सेना के कैप्टन ने उसका रेप किया। कैप्टन को गिरफ्तार करने के बजाय उसका बचाव किया गया, क्योंकि वह राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ का खास था।

जांच के नाम पर पहले पीड़ित को एक साइकेट्रिक क्लिनिक भेज दिया गया। उस पर ही गलत इल्जाम लगाए गए। जांच के नाम पर लीपापोती हुई। मजबूर होकर शाजिया और उनके पति पाकिस्तान छोड़कर ब्रिटेन चले गए।

यह घटना बलूचिस्तान में हुई। तब बुगती जनजाति के मुखिया नवाब अकबर खान बुगती ने इसे अपने कबीले के संविधान का उल्लंघन बताया। बुगती पहले पाकिस्तान के रक्षा मंत्री रहे चुके थे। लेकिन इस वक्त वे बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) के लीडर बन चुके थे और बलूचिस्तान के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे थे।

नवाब अकबर खान बुगती के नेतृत्व में 2005 में बलूच विद्रोहियों ने सरकार के खिलाफ विद्रोह किया।

नवाब अकबर खान बुगती के नेतृत्व में 2005 में बलूच विद्रोहियों ने सरकार के खिलाफ विद्रोह किया।

बुगती ने पाकिस्तान से बदला लेने की कसम खाई

इस घटना ने बुगती को पाकिस्तान सरकार से बदला लेने का मौका दे दिया। उन्होंने किसी भी कीमत पर बदला लेने की कसम खाई। बलूच विद्रोहियों ने सुई गैस फील्ड पर रॉकेटों से हमला कर दिया। कई सैनिक मारे गए। जवाब में मुशर्रफ ने मुकाबले के लिए 5000 और सैनिक भेज दिए। इस तरह बलूचों के पांचवें विद्रोह की शुरुआत हुई।

17 मार्च की रात पाकिस्तानी सेना ने अकबर बुगती के घर पर बमबारी की। इसमें 67 लोग मारे गए। अकबर बुगती के घरों के लोगों के मारे जाने से बलूच और भड़क गए। उनका पाकिस्तान सरकार के खिलाफ संघर्ष और तेज हो उठा। हालांकि 26 अगस्त 2006 को भांबूर पहाड़ियों में छुपे अकबर बुगती और उनके दर्जनों साथियों की बमबारी कर हत्या कर दी गई।

बुगती की हत्या ने बलूचिस्तान की सभी जनजातियों को एकजुट कर दिया। बलूच लड़ाकों ने इसके बदले पाकिस्तान के कई इलाकों पर हमले किए। तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की हत्या की भी कोशिश की गई।

बुगती के बाद BLA का नेतृत्व नवाबजादा बालाच मिरी ने संभाला, लेकिन साल 2007 में उसे भी पाकिस्तानी सेना ने मार डाला। BLA ने साल 2009 से पंजाबियों को निशाना बनाना शुरू किया। इस साल बलूचिस्तान में 500 से ज्यादा पंजाबी मार दिए गए। इसके बाद पाकिस्तान की सेना ने सिस्टमैटिक तरीके से बलूचों को गायब करना शुरू किया।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले 15 साल में पाकिस्तानी सेना ने 5 हजार से ज्यादा बलूचों को गायब कर दिया है। इन्हें मार दिया गया है या फिर इन्हें ऐसी जगह कैद कर रखा है, जिसकी कोई खबर नहीं है।

BLA ने अप्रैल 2022 में चीनी यात्रियों की गाड़ी पर हमला किया था। इसमें 3 चीनी नागरिक मारे गए थे।

BLA ने अप्रैल 2022 में चीनी यात्रियों की गाड़ी पर हमला किया था। इसमें 3 चीनी नागरिक मारे गए थे।

बलूचिस्तान में चीन ने प्रोजेक्ट शुरू किया, बलूचों का विरोध झेला

इस बीच बलूचिस्तान में चीन की एंट्री हुई। बलूचिस्तान, चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का एक अहम हिस्सा है। CPEC चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की ‘बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव’ का पार्ट है। बलूचिस्तान में एक ग्वादर पोर्ट है, जो इस प्रोजेक्ट में सबसे खास जगह माना जाता है।

चीन, पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट को शिनजिंयाग से जोड़ने के लिए अब तक 46 अरब डॉलर खर्च कर चुका है। वह अरब देशों के संसाधनों को अपने देश तक लाने के लिए ग्वादर पोर्ट पर इतना खर्च कर रहा है। चीन यहां पर सड़कों को चौड़ा कर रहा है और हवाई पोर्ट बनाने में जुटा है। लेकिन बलूच इसमें समस्या खड़ी कर रहे हैं।

खबरें और भी हैं…
Continue Reading
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Internattional

PM Modi France Visit: मोदी को मिल गया पुतिन सा एक और यार, मैक्रों ने तो मन मोह लिया, देख लें सबूत

Published

on

Last Updated:

PM Modi France Visit: पीएम मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की दोस्ती गहरी हो रही है. फ्रांस दौरे पर मोदी का भव्य स्वागत हुआ और दोनों नेताओं ने कई मुद्दों पर चर्चा की.

मोदी को मिल गया पुतिन सा एक और यार, मैक्रों ने तो मन मोह लिया, खुद देख लीजिए

फ्रांस में दिखी पीएम मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों की गहरी दोस्ती की झलक

हाइलाइट्स

  • पीएम मोदी का फ्रांस दौरे पर भव्य स्वागत हुआ.
  • मैक्रों ने पीएम मोदी के साथ गहरी दोस्ती दिखाई.
  • दोनों नेताओं ने कई मुद्दों पर चर्चा की.

नई दिल्ली: भारत-रूस की दोस्ती दशकों पुरानी है. समय-समय पर इसकी झलक दिखती रही है. इससे दुनिया भी वाकिफ है. पीएम मोदी ने पुतिन संग मिलकर उस दोस्ती के रंग को और गाढ़ा किया है. पुतिन की तरह ही अब पीएम मोदी को एक नया दोस्त मिला है. नाम है इमैनुएल मैक्रों. इमैनुएल मैक्रों फ्रांस के राष्ट्रपति हैं. जी हां, जैसे रूस और भारत की दोस्ती के चर्चे होते हैं. अब वह दिन दूर नहीं, जब भारत-फ्रांस की दोस्ती के भी गीत गुनगुनाए जाएंगे. इसकी झलक पीएम मोदी के फ्रांस दौरे पर खूब दिखी. यहां मैक्रों ने मोदी की आवभगत में कोई कमी नहीं होने दी. फ्रांस में जहां-जहां मोदी गए, वहां-वहां साए की तरह साथ रहे.

दरअसल, कोई देश हमें कितनी इज्जत दे रहा है, यह उसकी आगवानी और हॉस्पिटालिटी के तरीकों पर निर्भर करता है. पीएम मोदी जब पेरिस एआई समिट के लिए फ्रांस गए तो वहां नजारा रूस वाला दिखा. पीएम मोदी की रूस की तरह ही फ्रांस में भी ग्रैंड वेलकम हुआ. खुद राष्ट्रपति मैक्रों पीएम मोदी के साथ पुतिन की तरह नजर आए.

समय और सम्मान की बात
जी हां, प्रधानमंत्री मोदी की फ्रांस यात्रा का एक अनूठा पहलू था, राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की ओर से उन्हें दिया गया समय और सम्मान. यह दोनों नेताओं की बेहतर आपसी समझ और गहरी दोस्ती को दर्शाता है. इसकी झलक पल-पल दिखी. यात्रा के पहले दिन राष्ट्रपति मैक्रों ने पीएम मोदी को डिनर कराया. रात्रिभोज में दोनों नेताओं ने बातचीत की. अगले दिन ‘एआई एक्शन समिट’ में भी यह सौहार्दपूर्ण माहौल जारी रहा. भारत और फ्रांस ने संयुक्त रूप से शिखर सम्मेलन की मेजबानी की.

Image

हर जगह साए की तरह थे
अपने घनिष्ठ संबंधों को दर्शाते हुए दोनों नेताओं ने भारत-फ्रांस सीईओ फोरम की मेजबानी की, जो आर्थिक सहयोग के लिए उनके साझा दृष्टिकोण को दर्शाता है. दोस्ती के एक असाधारण संकेत में, दोनों नेता एक संयुक्त काफिले में और एक ही विमान में मार्सिले पहुंचे. राष्ट्रपति मैक्रों ने प्रधानमंत्री मोदी के लिए मार्सिले में रात्रिभोज की मेजबानी की. हर जगह साए की तरह मैक्रों मोदी के साथ दिखे.

मैक्रों ने मन मोह लिया
पीएम मोदी के लिए यूं तो सभी विश्व नेताओं ने सम्मान और महत्व दिखाया लेकिन जो निकटता और अपनापन मैक्रों ने दर्शाया उसका अन्य उदाहरण मिलना दुर्लभ है. मैक्रों दरअसल पीएम मोदी के दौरे को लेकर खासे उत्साहित थे. प्रधानमंत्री मोदी के पेरिस पहुंचने से पहले एक वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा कि वह और प्रधानमंत्री मोदी ‘तकनीकी संप्रभुता’ के लिए प्रयास करेंगे.

मैक्रों ने पीएम की तारीफ में क्या-क्या कहा?
फ्रांस के राष्ट्रपति ने कहा, ‘प्रधानमंत्री मोदी की तरह हमारा भी दृढ़ विश्वास है कि भारत और फ्रांस दो महान शक्तियां हैं और हमारे बीच विशेष संबंध हैं. हम अमेरिका का सम्मान करते हैं और उसके साथ काम करना चाहते हैं, हम चीन के साथ भी काम करना चाहते हैं, लेकिन किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं. मैक्रों ने कहा, ‘भारत और फ्रांस अग्रणी हैं लेकिन अमेरिका और चीन हमसे बहुत आगे हैं. हम एआई पर एक साथ काम करना चाहते हैं. पीएम मोदी भी नई टेक्नोलॉजी का फायदा उठाना चाहते हैं. लेकिन वह चाहते हैं कि यह भारत में भी हो.

homenation

मोदी को मिल गया पुतिन सा एक और यार, मैक्रों ने तो मन मोह लिया, खुद देख लीजिए

Continue Reading

Internattional

Tulsi Gabbard Interview; Bhagwat Geeta | Raisina Dialogue | तुलसी गबार्ड बोलीं-कृष्ण के उपदेश शक्ति और शांति देते हैं: अच्छे-बुरे पल में भगवत गीता पढ़ती हूं; भगवान के साथ रिश्ता मेरे जीवन का केंद्र

Published

on

नई दिल्ली11 मिनट पहले

  • कॉपी लिंक
तुलसी गबार्ड रायसीना डायलॉग में शामिल होने के लिए भारत आई हैं। - Dainik Bhaskar

तुलसी गबार्ड रायसीना डायलॉग में शामिल होने के लिए भारत आई हैं।

अमेरिकी नेशनल इंटेलिजेंस की डायरेक्टर तुलसी गबार्ड ने कहा कि वे कृष्ण भक्त हैं और अपनी जिंदगी के हर अच्छे-बुरे वक्त में वे भगवद गीता में दिए उपदेशों को पढ़ती हैं। अर्जुन को दिए कृष्ण के उपदेश उन्हें दिन भर शक्ति, शांति और आराम देते हैं।

तुलसी रायसीना डायलॉग में शामिल होने के लिए भारत आई हैं। उससे पहले उन्होंने ANI को दिए इंटरव्यू में ये बातें कहीं…

अध्यात्म, गीता और भारत पर तुलसी की 3 मुख्य बातें…

भगवान के साथ मेरा रिश्ता मेरे जीवन का केंद्र: तुलसी ने कहा कि मेरी आध्यात्मिक यात्रा और भगवान के साथ मेरा रिश्ता मेरे जीवन का केंद्र है। मैं रोज यही कोशिश करती हूं कि ऐसी जिंदगी जी सकूं जो भगवान के हिसाब से बेहतर हो। और भगवान के सभी बच्चों की सेवा कर पाने से बेहतर तरीका क्या हो सकता है।

भगवत गीता के उपदेशों से मूल्यवान सीख मिलती है: मेरी जिंदगी के अलग-अलग समय में, चाहे मैं वॉर जोन रहूं या आज हम जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, हर समय में कृष्ण के उपदेश से मुझे हर बार कोई मूल्यवान सीख मिलती है। इससे मुझे सब तरह के दिनों में शांति, शक्ति और सुकून मिलता है।

भारत आकर लगता है जैसे घर आ गई हूं: तुलसी ने कहा कि भारत से मुझे बहुत प्यार है। मैं जब भी यहां आती हूं तो लगता है कि अपने ही घर आई हूं। यहां के लोग बहुत दयालु हैं और प्यार से स्वागत करते हैं। यहां का खाना हमेशा स्वादिष्ट लगता है। दाल मखनी और ताजा पनीर से बनाई गई हर चीज बहुत लजीज होती है।

तुलसी ने पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमलों को इस्लामी आतंक कहा

भारत में लगातार हो रहे पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमलों को तुलसी ने इस्लामी आतंक बताया। उन्होंने कहा कि ये भारत और अमेरिका समेत कई मिडिल ईस्ट देशों पर भी खतरा बनता जा रहा है।

तुलसी ने कहा, ‘राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इस्लामी आतंक से लड़ने के अपने वादे को लेकर बहुत साफ हैं। इस आतंक ने हमें घेर लिया है और लगातार अमेरिकी लोगों पर खतरा बना हुआ है। ये भारत, बांग्लादेश में लोगों को प्रभावित करता रहा है और मौजूदा समय में सीरिया, इजराइल और मिडिल ईस्ट के कई देशों में लोगों पर असर डाल रहा है। मुझे पता है पीएम मोदी इस खतरे को बहुत गंभीरता से लेते हैं। दोनों नेता इस खतरे को पहचानने और इसे हराने के लिए मिलकर काम करेंगे।’

खबरें और भी हैं…
Continue Reading

Internattional

‘मैंने कई इजरायलियों को मार दिया’, नर्स के दावे के बाद ऑस्ट्रेलिया के अस्पतालों में मची खलबली – australia hospital examines patient records after nurse claims to have killed israelis antisemitic attacks

Published

on

Last Updated:

Australia News: ऑस्‍ट्रेलिया में एक नर्स का वीडियो वायरल हुआ है, जिसके बाद देश के साथ ही पूरी दुनिया में खलबली मची हुई है. आरोपी नर्स इस वीडियो में इजरायल के नागरिकों की हत्‍या करने का दावा कर रही है.

'मैंने कई इजरायलियों को मार दिया', नर्स के दावे के बाद ऑस्ट्रेलिया में खलबली

ऑस्‍ट्रेलिया में एक नर्स ने इजरायली मरीजों की हत्‍या करने का दावा कर सनसनी मचा दी है. ऑस्‍ट्रेलिया में इजरायल विरोधी भावनाएं बढ़ी हैं. (फोटो: AP)

हाइलाइट्स

  • ऑस्‍ट्रेलिया में नर्स ने इजरायली मरीजों की हत्‍या करने का दावा किया है
  • नर्स के दावों की जांच शुरू कर दी गई है, मरीजों के रिकॉर्ड खंगाले जा रहे
  • इजरायल-हमास युद्ध के बाद यहूदी विरोधी भावनाओं में आया है उभार

मेलबर्न (ऑस्‍ट्रलिया). ऑस्‍ट्रेलिया में बड़ी तादाद में अन्‍य देशों के लोग रहते हैं. इसे विभिन्‍न संस्‍कृतियों का संगम स्‍थल भी कहा जाता है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिससे इस भावना को चोट पहुंची है. इजरायल-हमास के बीच युद्ध शुरू होने के बाद ऑस्‍ट्रेलिया में यहूदी विरोधी भावनाएं काफी बढ़ी हैं. अब न्‍यू साउथ वेल्‍स स्‍टेट में फिर से ऐसा ही मामला समाने आया है. एक अस्‍पताल में तैनात नर्स ने दावा किया है कि उसने इजरायली नागरिकों की हत्‍या की है. नर्स के दावे से देशभर में सनसनी फैल गई है. न्‍यू साउथ वेल्‍स के हेल्‍थ डिपार्टमेंट ने नर्स के दावे की जांच करने की बात कही है. साथ ही संबंधित हॉस्पिटल में मरीजों का रिकॉर्ड भी चेक किया जाएगा.

ऑस्‍ट्रेलिया अधिकारियों ने बुधवार को बताया कि एक नर्स द्वारा इजरायलियों को मारने का ऑनलाइन दावा किए जाने के बाद अस्‍पताल मरीजों के रिकॉर्ड की जांच कर रहा है. हालांकि, अधिकारियों ने इस बात पर जोर दिया कि मरीजों को नुकसान पहुंचाने का कोई सबूत सामने नहीं आया है. नर्स का यह दावा यहूदी विरोधी हमलों और बयानबाजी में सबसे नया है, जिसने ऑस्ट्रेलिया को हिलाकर रख दिया है. बता दें कि पिछले एक साल से कुछ ज्‍यादा समय से ऑस्‍ट्रेलिया में यहूदी विरोधी भावनाओं में वृद्धि हुई है. समुदाय से जुड़े लोगों के घरों, कार्यालयों और व्‍यावसायिक प्रतिष्‍ठानों में तोड़फोड़ की गई है. यहूदियों को निशाना बनाने वाले अपराधों के साथ एक स्कूल और दो सिनेगॉग (यहूदी धर्मस्‍थल) को आग के हवाले तक कर दिया गया है.

आरोपी नर्स सस्‍पेंड
सिडनी के बैंकस्टाउन अस्पताल में मंगलवार को रात की पाली के दौरान इजरायली इन्फ्लुएंसर मैक्स वीफ़र के साथ ऑनलाइन चर्चा में भाग लेने वाली दो नर्सों को बुधवार को सस्‍पेंड कर दिया गया. हेल्‍थ मिनिस्‍टर पार्क ने कहा कि वे फिर कभी स्‍टेट हेल्‍थ डिपार्टमेंट के लिए काम नहीं करेंगी. पार्क ने इन नर्सो पर टिप्‍पणी करते हुए उन्‍हें नीच, घृणित और विक्षिप्त बताया है. ऑस्ट्रेलिया में एक यहूदी संगठन के अधिकारी एलेक्स रिव्चिन ने जोर देकर कहा कि सिडनी के यहूदी समुदाय के प्रति ऑस्ट्रेलिया के मेडिकल प्रैक्टिशनर के बीच नफरत और अतिवाद बढ़ रहा है.

पुलिस स्‍ट्राइक फोर्स
न्यू साउथ वेल्स स्‍टेट के स्वास्थ्य मंत्री रयान पार्क ने बताया कि साल 2023 में इजराइल-हमास युद्ध शुरू होने के बाद से सिडनी में यहूदी विरोधी अपराधों पर खास तौर से निपटने के लिए पुलिस स्‍ट्राइक फोर्स का गठन किया गया है. यह टीम हेट स्‍पीच कानून का उल्‍लंघन सहित ऑनलाइन वीडियो के चलते हुए अपराधों की जांच करती है. बता दें कि सिडनी और मेलबर्न में 85 फीसद यहूदी रहते हैं.

homeworld

‘मैंने कई इजरायलियों को मार दिया’, नर्स के दावे के बाद ऑस्ट्रेलिया में खलबली

Continue Reading

TRENDING

Copyright © 2022 TenX News Network