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India-Afghanistan Relations: UNSC में भारत ने तालिबान संग बातचीत और Humanitarian Aid पर दिया बयान

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India Afghanistan News: भारत ने UNSC को बताया कि उसने तालिबान शासन के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की है. भारत ने बताया कि वह मानवीय सहायता जारी रखते हुए विकास परियोजनाओं पर विचार करेगा. अफगानिस्तान में स्थि…और पढ़ें

अफगानिस्तान में क्या कर रहा इंडिया? UNSC में भारत ने पूरी दुनिया को बता दिया

अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत ने UNSC में दिया बयान. (Reuters)

हाइलाइट्स

  • भारत ने UNSC को तालिबान से द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की जानकारी दी
  • भारत अफगानिस्तान में मानवीय सहायता और विकास परियोजनाओं पर विचार करेगा
  • भारत अफगानिस्तान में स्थिरता और शांति के प्रयासों में सक्रिय भागीदार है

संयुक्त राष्ट्र: भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) को अफगानिस्तान और तालिबान के मुद्दे पर बेहद महत्वपूर्ण जानकारी दी है. भारत ने बताया है कि उसने तालिबान शासन के साथ द्विपक्षीय संबंधों से जुड़े अलग-अलग मुद्दों पर चर्चा की है. भारत ने यह भी कहा कि भारतीय लोगों और अफगान लोगों के बीच संबंधों में हमेशा से करीबी रही है. यही ‘विशेष’ संबंध भारत के अफगानिस्तान के साथ मौजूदा जुड़ाव का ‘आधार’ रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत पर्वतनेनी हरीश ने सोमवार को अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में यह जानकारी दी. राजदूत हरीश ने बताया कि इस साल की शुरुआत में भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने दुबई में अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मावलवी आमिर खान मुत्ताकी से मुलाकात की थी. हरीश ने कहा, ‘दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय संबंधों के साथ-साथ क्षेत्रीय विकास से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की. अफगान पक्ष ने अफगानिस्तान के लोगों के साथ जुड़ने और उनका समर्थन करने के लिए भारतीय नेतृत्व की सराहना की और उन्हें धन्यवाद दिया.’

उन्होंने कहा, ‘यह निर्णय लिया गया कि भारत, अफगानिस्तान में जारी मानवीय सहायता कार्यक्रमों के अलावा निकट भविष्य में विकास परियोजनाओं में शामिल होने पर विचार करेगा.’ मिस्री और मुत्ताकी के बीच जनवरी में हुई बैठक, 2021 में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से भारत और तालिबान के बीच अब तक का सबसे उच्च स्तरीय संपर्क था. हरीश ने इस बात पर जोर दिया कि भारत और अफगानिस्तान के बीच रिश्ता सदियों पुराना रहा है और अपने पड़ोसी देश के रूप में भारत और अफगानिस्तान के लोगों के बीच एक विशेष रिश्ता है जो ‘देश के साथ हमारे वर्तमान जुड़ाव का आधार’ रहा है.

अफगानिस्तान के हालात पर भारत की नजर
हरीश ने कहा कि भारत अफगानिस्तान की स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहा है और देश में स्थिरता एवं शांति बनाए रखने के लिए क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में सक्रिय रूप से शामिल रहा है. भारतीय दूत ने कहा, ‘हमारा व्यापक दृष्टिकोण अफगानिस्तान के लोगों को मानवीय सहायता प्रदान करना और अफगानिस्तान में वास्तविक अधिकारियों एवं अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच विभिन्न मुद्दों को हल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के ढांचे के तहत एक अंतरराष्ट्रीय आम सहमति बनाना है.’ उन्होंने कहा कि दोहा, मॉस्को फॉर्मेट और अन्य मंचों में संयुक्त राष्ट्र की बैठकों में भारत की भागीदारी ‘अफगानिस्तान में शांति, स्थिरता और विकास को सुरक्षित करने के हमारे प्रयासों का प्रतिबिंब है.’

भारत ने अफगानिस्तान को अब तक क्या दिया?
भारत ने संयुक्त राष्ट्र संस्था को बताया कि वह स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, खेल और दक्षता विकास के क्षेत्रों में अफगानिस्तान के लोगों को सहायता प्रदान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की विभिन्न एजेंसियों के साथ काम कर रहा है. वर्ष 2001 से भारत, अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा, ‘हमारी विकास साझेदारी में अफगानिस्तान के सभी प्रांतों में फैली 500 से अधिक परियोजनाएं शामिल हैं.’ अगस्त 2021 से अब तक भारत ने देश को 27 टन राहत सामग्री, 50 हजार टन गेहूं, 40 हजार लीटर कीटनाशक और 300 टन से अधिक दवाइयां तथा चिकित्सा उपकरण दिए हैं.

अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव की विशेष प्रतिनिधि रोजा ओटुनबायेवा ने परिषद को बताया कि यह वास्तविक अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे बताएं कि क्या वे चाहते हैं कि अफगानिस्तान को अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में फिर से शामिल किया जाए और अगर ऐसा है तो क्या वे आवश्यक कदम उठाने के लिए तैयार हैं? जनवरी में मिस्री और मुत्ताकी के बीच बैठक के बाद विदेश मंत्रालय की ओर से एक बयान में कहा गया था कि दोनों पक्षों ने जारी भारतीय मानवीय सहायता कार्यक्रमों का मूल्यांकन किया. अफगानिस्तान के मंत्री ने अफगानिस्तान के लोगों के साथ जुड़ने और उनका समर्थन करने के लिए भारतीय नेतृत्व की सराहना की और उन्हें धन्यवाद दिया.

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यही है वह आतंकी, जिसके इंतजार में था अमेरिका, शरीफुल्लाह ने कोर्ट में की ऐसी मांग, जज ने तुरंत कर दी पूरी

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US News: अमेरिका ने अफगानिस्तान से आतंकी शरीफुल्लाह को पकड़ा. अब उसे अमेरिका की अदालत में पेश किया गया. वह अमेरिकी सैनिकों की मौत का जिम्मेदार है. उसे वर्जीनिया की अदालत में पेश किया गया. अगली सुनवाई सोमवार को …और पढ़ें

यही है वह आतंकी, जिसके इंतजार में था US, अदालत में की ऐसी मांग, तुरंत हुई पूरी

अमेरिका अपने दुश्मन को घसीटकर ले आया है.

हाइलाइट्स

  • अमेरिका ने आतंकी शरीफुल्लाह को अफगानिस्तान से पकड़ा.
  • शरीफुल्लाह को वर्जीनिया की अदालत में पेश किया गया.
  • अगली सुनवाई सोमवार को होगी.

अमेरिका को जिसकी तलाश थी, वह पूरी हो गई. अमेरिका का चार साल पुराना इंतजार खत्म हो गया. यह अब अमेरिकी के जख्म पर मरहम का काम करेगा.जी हां, अमेरिकी एजेंसियों ने जिस आतंकी को अफगानिस्तान से पकड़ा है, वह अमेरिका की धरती पर पहुंच चुका है. अफगानिस्तान के एबी गेट पर अमेरिकी सैनिकों की मौत का जिम्मेदार आतंकवादी शरीफुल्लाह बुधवार शाम अमरीका पहुंचा. यहां उसे वर्जीनिया की अलेक्जेंड्रिया स्थित संघीय अदालत में पेश किया गया. अमेरिका ने पहली बार उसकी तस्वीर भी जारी की है.

अदालत में आतंकी शरीफुल्लाह को जज विलियम पोर्टर के सामने पेश किया गय. इस दौरान आतंकी शरीफुल्लाह ने ने बताया कि उसे अमेरिका में बोली जाने वाली भाषा समझ में नहीं आती. इसके बाद उसे दारी भाषा बोलने वाले दुभाषिया की मदद प्रदान की गई. कोर्ट में सुनवाई के दौरान आतंकवादी नीली वर्दी में था. उसके चेहरे पर फेस मास्क था. उसके साथ बड़ी संख्या में एफबीआई के एजेंट और सुरक्षा गार्ड थे. जज विलियम पोर्टर ने शरीफुल्लाहल और अमेरिकी सरकार की दलील सुनी. अदालत ने शरीफुल्लाह को उसके खिलाफ लगे आरोप बताए. इसके बाद उसे अगली सुनवाई तक हिरासत में रखने के आदेश जारी किया. उसकी अगली सुनवाई सोमवार की दोपहर होगी.

खुफिया रिपोर्ट क्या कहती है
खुफिया रिपोर्ट के अनुसार, शरीफुल्लाह को जफर, नासेर और अजमल के नाम से भी जाना जाता है. वह काबुल में कम से कम 29 आत्मघाती बम विस्फोट और कई आतंकवादी हमलों को अंजाम देने और उसकी योजना बनाने में शामिल था. शरीफुल्ला पर प्रारंभिक जांच के बाद यह आरोप लगाया गया है कि उसने काबुल एयरपोर्ट पर एबी गेट अटैक में मुख्य भूमिका निभाई. वह अफगान राष्ट्रपति महल और अमेरिकी दूतावास पर रॉकेट हमलों सहित अन्य हमलों में शामिल था. शरीफुल्लाह आईएसआईएस-के की काबुल कतिबा इकाई का हिस्सा था.

कब हुआ रिहा
वह आईएसआईएस-के (खुरासान) नेता शहाब अल-मुहाजिर का करीबी था. उसे पहले अगस्त 2019 में पिछली अफगान गुप्त एजेंसी एनडीएस ने गिरफ्तार किया था. लेकिन जब अगस्त 2021 में तालिबान ने काबुल पर नियंत्रण कर लिया तो उसे बगराम जेल से रिहा कर दिया गया. इसके ऊपर ही आरोप है कि उसकी वजह से ही 2021 में काबुल अटैक में अमेरिका के 13 सैनिकों की मौत हुई थी.

शरीफुल्लाह की कुंडली और पाक की मदद
शरीफुल्लाह को ISIS में जफर के अलावा इंजीनियर शरीफ और अजमल के नाम से भी जाना जाता था. आतंकवादी संगठन आईएसआईएस खुरासन प्रोविंस में जब वह सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रहा था, तब वह इशाकजई नाम से टेलीग्राम अकाउंट के जरिए अपने मातहतों का नेतृत्व कर रहा था. बताया गया कि उसकी गिरफ्तारी में पाकिस्तान ने बड़ी मदद की है. तभी डोनाल्ड ट्रंप ने कांग्रेस को संबोधित करते वक्त उसकी तारीफ की. बहरहाल, सोमवार को उसे फिर से अमेरिकी कोर्ट के सामने पेश किया जाएगा.

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Donald Trump Tariff War: डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकी में भी जयशंकर को दिखा ‘मौका’, आखिर क्या है भारत का ‘प्लान अमेरिका’?

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S Jaishankar on Donald Trump Tariff War: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर भी 2 अप्रैल से टैरिफ लगाने की धमकी दी है. इस मुद्दे पर अब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर का भी बयान आया है. जानें उन्होंने क्य…और पढ़ें

ट्रंप की धमकी में भी जयशंकर को क्यों दिखा 'मौका', क्या है भारत का 'US प्लान'?

डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर भी टैरिफ की धमकी दी है, जिस पर अब जयशंकर ने प्रतिक्रिया दी है.

हाइलाइट्स

  • ट्रंप ने भारत पर टैरिफ की धमकी दी.
  • जयशंकर ने कहा, भारत और अमेरिका में खुली बातचीत हुई.
  • भारत व्यापार वार्ता के लिए तैयार है.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर भी टैरिफ की धमकी दी है. यह खबर कल देशभर में छाई रही और भी आज भी अखबारों के पहले पन्ने पर छपी है. अब इस मुद्दे पर भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की भी प्रतिक्रिया आई है. उन्होंने बुधवार को कहा कि भारत सरकार और अमेरिकी प्रशासन के बीच इस मुद्दे पर खुली बातचीत हुई है. जयशंकर ने कहा कि ट्रंप जो कर रहे हैं, वह अपेक्षित था, क्योंकि उन्होंने इस साल जनवरी में अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही ऐसा करने का वादा किया था.

लंदन में चैथम हाउस में एक चर्चा सत्र के दौरान जयशंकर ने कहा, ‘यह दिलचस्प है… इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है. अगर आपने इसे ट्रैक किया हो, तो यह साफ था कि ऐसा होगा. आमतौर पर, राजनीतिक नेता वही करते हैं जो वे वादा करते हैं. जो हो रहा है, वह पहले से अपेक्षित था… मैं थोड़ा हैरान हूं कि लोग हैरान हो रहे हैं.’

‘अमेरिकन पॉलिसी भारत के लाभकारी’
जब उनसे पूछा गया कि क्या अमेरिकी नीतियां भारत के लिए लाभकारी हैं, तो जयशंकर ने कहा कि हाल के वर्षों में भारत और अमेरिका के बीच कोई बड़ी राजनीतिक समस्या नहीं रही है.

उन्होंने कहा, ‘हमारे प्रधानमंत्री वाशिंगटन डीसी में थे. हम देखते हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप बहुध्रुवीयता को समर्थन देते हैं. 1945 के बाद से, अगर हम अपने संबंधों को देखें, तो हाल के वर्षों में किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ भारत को कोई समस्या नहीं हुई है. हमारे पास कोई पुराना राजनीतिक विवाद नहीं है.”

जयशंकर ने यह भी कहा कि ट्रंप प्रशासन क्वाड (QUAD) को मजबूत करने के पक्ष में है और अमेरिका भारत के लिए तकनीकी और व्यापारिक दृष्टिकोण से कई अवसर उपलब्ध करा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘ट्रंप ने ऊर्जा की कीमतों को स्थिर बनाए रखा. वह टेक्नोलॉजी और विकास को प्राथमिकता देते हैं, जो भारत के लिए लाभकारी है. वह कनेक्टिविटी परियोजनाओं के लिए भी खुले हैं, जिसमें भारत की गहरी रुचि है. हां, उनके पास व्यापार को लेकर एक निश्चित दृष्टिकोण है. हमने इस पर खुली बातचीत की और नतीजा यह रहा कि हम दोनों देशों के बीच व्यापार समझौते की आवश्यकता पर सहमत हुए. हमारे व्यापार मंत्री इस पर अमेरिका में चर्चा कर रहे हैं.’

ट्रंप ने भारत पर टैरिफ की क्यों दी धमकी?
डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित करते हुए भारत, चीन और अन्य देशों के खिलाफ पारस्परिक टैरिफ लगाने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि जो देश अपने उत्पाद अमेरिका में नहीं बनाते, उन्हें टैरिफ देना होगा. उन्होंने कहा, ‘जो भी हमें टैरिफ लगाएगा, हम भी उन पर वही टैरिफ लगाएंगे. जो भी हमें टैक्स लगाएगा, हम भी उन्हें उतना ही टैक्स लगाएंगे.’

ट्रंप ने कहा कि यूरोपीय संघ, चीन, ब्राजील और भारत अमेरिका पर अधिक टैरिफ लगाते हैं. उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा, ‘भारत ऑटोमोबाइल पर 100% टैरिफ लगाता है, यह पूरी तरह से अनुचित है.’

इस नई नीति के चलते, भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में तनाव बढ़ सकता है. हालांकि, भारत ने स्पष्ट किया है कि वह व्यापार वार्ता के लिए तैयार है और पारस्परिक रूप से लाभकारी समाधान तलाशना चाहता है. अब देखना यह होगा कि अमेरिका की तरफ से लगाए जाने इस संभावित टैरिफ के जवाब में भारत क्या कदम उठाता है.

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ट्रंप की धमकी में भी जयशंकर को क्यों दिखा ‘मौका’, क्या है भारत का ‘US प्लान’?

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Trump Zelenskyy Rift: जेलेंस्की की समझो हो गई छुट्टी, यूक्रेन में तख्तापलट का स्क्रिप्ट तैयार, डोनाल्ड ट्रंप ने बिछा दिए पत्ते

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Trump Zelenskyy Rift: क्या डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की के तख्तापलट की तैयारी में जुट गए हैं. दरअसल एक खबर ने इन अटकलों को हवा दे दी. इसमें बताया गया कि ट्रंप के टॉप अधिकारियों ने जेलें…और पढ़ें

जेलेंस्की के तख्तापलट की तैयारी शुरू! ट्रंप ने यूक्रेन में बिछा दिए पत्ते

ट्रंप के चार टॉप अधिकारियों ने जेलेंस्की के प्रमुख राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से मुलाकात की खबर ने हलचल मचा दी. (AP फाइल फोटो)

हाइलाइट्स

  • ट्रंप ने जेलेंस्की के प्रतिद्वंद्वियों से गुप्त बातचीत की.
  • इस मुलाकात से यूक्रेन में तख्तापलट की अटकलें तेज.
  • अमेरिका और रूस दोनों जेलेंस्की को सत्ता से हटाने की कोशिश में.

क्या डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन में राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की के तख्तापलट की कोशिश में जुटे गए हैं? अमेरिकी अखबार द पॉलिटिको की रिपोर्ट से ऐसी अटकलें तेज हो गई हैं. पिछले दिनों ओवल ऑफिस में ट्रंप और जेलेंस्की के बीच हुई तीखी नोंकझोक तो पूरी दुनिया ने देखी, वहीं अब पॉलिटिको ने खबर दी है कि ट्रंप के चार टॉप अधिकारियों ने जेलेंस्की के प्रमुख राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों से बातचीत की है. यह वार्ता बेहद गुप्त रखी गई थी, लेकिन इस खबर के सामने आने के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका और रूस दोनों ही किसी भी तरह जेलेंस्की को सत्ता से बाहर करने की कोशिश में जुटे हैं.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप के करीबी सहयोगियों ने यूक्रेन की विपक्षी नेता यूलिया तिमोशेंको और पूर्व राष्ट्रपति पेट्रो पोरोशेंको की पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों से मुलाकात की. ये बातचीत कथित तौर पर यूक्रेन में जल्द से जल्द राष्ट्रपति चुनाव कराने की संभावनाओं पर केंद्रित रही, जो वर्तमान में मार्शल लॉ के कारण स्थगित हैं. आलोचकों का मानना है कि युद्धग्रस्त देश में इस तरह के चुनाव अराजकता फैला सकते हैं और रूस को इसका फायदा मिल सकता है, क्योंकि लाखों संभावित मतदाता या तो मोर्चे पर हैं या शरणार्थी के रूप में विदेश में रह रहे हैं.

क्या ट्रंप की रणनीति काम करेगी?
ट्रंप के सहयोगियों को भरोसा है कि ज़ेलेंस्की युद्ध की थकान और देश में फैले भ्रष्टाचार को लेकर जनता की नाराज़गी के कारण किसी भी चुनाव में हार जाएंगे. हालांकि, हाल ही में हुए वाइट हाउस विवाद के बाद जेलेंस्की की लोकप्रियता में बढ़ोतरी देखी गई है. ताजा सर्वेक्षणों के मुताबिक, अब भी 44% लोग जेलेंस्की का समर्थन कर रहे हैं, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी वलेरी ज़ालुज़नी उनसे 20 अंकों से पीछे हैं.

मुंह में राम, बगल में छूरी!
ट्रंप प्रशासन की ओर से कहा जा रहा है कि वे यूक्रेन की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं. अमेरिकी वाणिज्य मंत्री हार्वर्ड लुटनिक ने इस हफ्ते दावा किया कि राष्ट्रपति ट्रंप केवल ‘शांति के लिए एक सहयोगी’ चाहते हैं. लेकिन ज़मीनी हालात कुछ और ही इशारा कर रहे हैं.

ट्रंप खुद ज़ेलेंस्की को ‘बिना चुनाव वाला तानाशाह’ कह चुके हैं, जबकि अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेंस निदेशक तुलसी गैबार्ड ने यूक्रेन सरकार पर चुनाव रद्द करने का झूठा आरोप लगाया है. हालांकि, हकीकत यह है कि तिमोशेंको और पोरोशेंको जैसे विपक्षी नेता भी युद्ध समाप्त होने से पहले चुनाव कराने के पक्ष में नहीं हैं.

सीक्रेट मीटिंग में रूस का भी रोल?
सूत्रों के मुताबिक, इन गुप्त बैठकों में सबसे अहम मुद्दा यही रहा कि राष्ट्रपति चुनाव अस्थायी संघर्षविराम के बाद और पूर्ण शांति वार्ता शुरू होने से पहले आयोजित किए जाएं. यह वही रणनीति है, जिसे रूस भी लंबे समय से समर्थन देता आ रहा है. यूक्रेन की सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए बैठे तिमोशेंको और पोरोशेंको ने सार्वजनिक रूप से चुनाव कराने का विरोध किया है, लेकिन अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि दोनों नेता ट्रंप खेमे से गुप्त संपर्क में हैं और खुद को अमेरिका के लिए “बेहतर विकल्प” के रूप में पेश कर रहे हैं.

पॉलिटिको के मुताबिक, जब तिमोशेंको की प्रवक्ता नताल्या लिसोवा से पूछा गया कि क्या वह वाकई ट्रंप प्रशासन के संपर्क में हैं, तो उन्होंने केवल इतना कहा, ‘हम इस पर अभी कोई टिप्पणी नहीं करेंगे.’

यह घटनाक्रम साफ इशारा करता है कि अमेरिका, रूस और यूक्रेन के भीतर सत्ता संघर्ष तेज़ हो रहा है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ज़ेलेंस्की इस चुनौती का सामना कर पाएंगे, या फिर वॉशिंगटन और मॉस्को की राजनीतिक चालें उन्हें सत्ता से बेदखल करने में कामयाब होंगी.

जेलेंस्की के कुर्सी छोड़ने पर जोर
डोनाल्ड ट्रंप के कैबिनेट अधिकारियों ने बीते कुछ दिनों से लगातार यह संकेत दिया है कि अगर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की अमेरिका की युद्ध समाप्ति योजना का पूरी तरह समर्थन नहीं करते, तो उन्हें पद छोड़ देना चाहिए. यह योजना यूक्रेन के लिए बड़े समझौतों के साथ तेजी से युद्ध समाप्त करने पर आधारित है.

व्हाइट हाउस में बीते शुक्रवार हुए जोरदार टकराव के बाद से ट्रंप प्रशासन का यह रुख और भी कड़ा हो गया है. वहीं, यूक्रेन में ज़ेलेंस्की के राजनीतिक विरोधी अब सार्वजनिक रूप से यह संकेत देने लगे हैं कि अमेरिका के साथ यूक्रेन के रिश्ते अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और इन्हें बहाल किया जाना चाहिए. कीव में इसे ज़ेलेंस्की के प्रति अप्रत्यक्ष आलोचना के रूप में देखा जा रहा है। ज़ेलेंस्की ने भी अब पिछले सप्ताह की गर्मागर्म बहस पर खेद जताया है और कहा है कि वह ट्रंप के साथ शांति वार्ता के लिए तैयार हैं.

सांसदों को तोड़ने की तैयारी
वाइट हाउस विवाद के झटके यूक्रेनी संसद में भी महसूस किए जा रहे हैं. पॉलीटिको की रिपोर्ट के मुताबिक, विपक्षी नेता यूलिया तिमोशेंको अब अन्य पार्टियों के सांसदों से संपर्क कर रही हैं और उन्हें अपनी पार्टी में शामिल होने के लिए मना रही हैं. रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया है कि तिमोशेंको का मानना है कि ज़ेलेंस्की के पास जल्द चुनाव करवाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा, जिससे संसदीय बहुमत को फिर से आकार देने का सुनहरा मौका मिलेगा.

यूक्रेन में जनता की राय कैसे बदल रही है?
हालांकि, जेलेंस्की ने अपने पद से हटने की किसी भी संभावना को खारिज कर दिया है. लंदन में पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने मज़ाक में कहा, ‘अगर इस साल चुनाव हुए, तो भी मैं जीत सकता हूं.’ उन्होंने यह भी संकेत दिया कि यदि यूक्रेन को NATO की सदस्यता मिलती है, तो वह पद छोड़ने के बारे में सोच सकते हैं.

अब जनता का एक बड़ा तबका युद्ध समाप्त करने को प्राथमिकता देने लगा है. लगभग 25% जनता, जिसमें मुख्य रूप से सैन्य परिवार शामिल हैं, युद्ध जारी रखने के पक्ष में हैं और चाहते हैं कि रूस को यूक्रेन के हर हिस्से से बाहर निकाला जाए. लेकिन दो-तिहाई लोग अब शांति वार्ता चाहते हैं. इनमें से आधे लोग यूक्रेन द्वारा बड़े समझौते करने के लिए तैयार हैं, जबकि अन्य आधे तत्काल युद्धविराम चाहते हैं.

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जेलेंस्की के तख्तापलट की तैयारी शुरू! ट्रंप ने यूक्रेन में बिछा दिए पत्ते

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