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इंदिरा गांधी ने 1971 में अमेरिकी धमकियों के बावजूद बांग्लादेश को आजादी दिलाई

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यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को व्हाइट हाउस में बुलाकर जिस तरह ट्रंप ने अपमान किया, वैसा ही कुछ 54 साल पहले अमेरिकी प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन ने भारत के साथ करने की कोशिश की थी तब भारतीय पीएम ने कैस…और पढ़ें

1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में शरणार्थी वहां की सेना के दमनचक्र के कारण भारत पहुंचने लगे थे तो इंदिरा गांधी ने संकेत दे दिया था वो इसे चुपचाप नहीं देख सकतीं. जब इस मामले की बातचीत के लिए वह अमेरिका पहुंचीं तो तत्कालानी अमेरिकी प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन ने एक तरह से उन्हें दबाव में लेने की कोशिश की. अपमानजनक व्यवहार किया. धमकी दी कि अगर भारत ने पूर्वी पाकिस्तान की ओर अपने सैनिक भेजने की हिम्मत की तो ये भारत के लिए बहुत बुरा होगा. इस धमकी से अच्छे खासे देश के राष्ट्रप्रमुखों को पसीना आ जाता लेकिन इंदिरा गांधी तो अलग ही मिट्टी की बनीं थीं. उन्होंने अमेरिकी धमकी का मुंहतोड़ तोड़ जवाब दिया. अमेरिका मुंह लेकर रह गया. कुछ नहीं कर पाया. बल्कि उल्टे अमेरिकी प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन की ही गद्दी चली गई.
आखिर तब कैसे इंदिरा गांधी ने अमेरिका को चुनौती देकर बांग्लादेश में ना केवल सेना भेजी बल्कि उसे पाकिस्तान से तोड़कर आजाद देश भी बनवा दिया. 1971 में बांग्लादेश में मुक्ति संग्राम चल रहा था. पाकिस्तान की सेना बुरी तरह पूर्वी पाकिस्तान कहे जाने वाले इस इलाके में दमनचक्र चलाकर कत्लेआम कर रहे थे.
भारत पर असर इसलिए पड़ रहा था, क्योंकि बडी संख्या में शरणार्थी सीमा पारकर करके असम पहुंचने लगे. इससे भारत के सामने उन्हें ठहराने और भोजने देने का संकट खड़ा हो गया. जाहिर सी बात है कि पूर्वी पाकिस्तान में जो कुछ भी हो रहा था उसका असर भारत पर पड़ रहा था.
पाकिस्तान के तानाशाह जनरल याह्या खान ने 25 मार्च 1971 को ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ के जरिए ढाका में नरसंहार शुरू किया. 30 लाख से अधिक बांग्लादेशी मारे गए. 1 करोड़ से ज्यादा लोग भारत में शरण लेने आए. इंदिरा गांधी ने इसे मानवीय संकट और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया.
अमेरिका ने इंदिरा गांधी को दी चुपचाप रहने की धमकी
भारत इससे चिंतित था लेकिन अमेरिका ने भारत को धमकी दी कि वो केवल चुपचाप रहे. कुछ भी करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तब पाकिस्तान अमेरिका के लाड़ले देशों में था. इसी वजह से जब इंदिरा गांधी वाशिंगटन पहुंची तो उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं हुआ. इंदिरा एक झटके से वहां से उठीं और निकल गईं.
इंदिरा का अपमान करने की कोशिश की
अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर खुले तौर पर पाकिस्तान के समर्थन में थे. वे नहीं चाहते थे कि भारत पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में सैन्य हस्तक्षेप करे. निक्सन और किसिंजर ने इंदिरा गांधी को निजी बातचीत में अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया था. हालांकि तब इंदिरा वहां नहीं थीं. 2005 में सार्वजनिक हुई अमेरिकी सरकार की सीक्रेट रिकॉर्डिंग्स से पता चला कि निक्सन ने इंदिरा गांधी के लिए नस्लीय और अपमानजनक शब्द कहे थे. किसिंजर ने भी भारत को “गंदा और अहंकारी देश” बताया था.
तब इंदिरा ने बजा दिया निक्सन का ही बैंड
इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सेना भेजने का फैसला अमेरिका की खुली नाराजगी और धमकियों के बावजूद उनका बैंड बजाने में कोई कोरकसर बाकी नहीं रखी. ये निर्णय उनके राजनीतिक दृढ़ संकल्प, कूटनीतिक चतुराई और रणनीतिक सैन्य तैयारियों का नतीजा था. अमेरिका को इस तरह का जवाब आजतक शायद कोई देश नहीं दे पाया है.
झल्लाने के अलावा कुछ नहीं कर सका अमेरिका
इंदिरा ने जब अमेरिका की धमकी की अनदेखी करते हुए बांग्लादेश में अपनी सेना उतार दी तो अमेरिका बुरी तरह झल्ला गया. अमेरिकी प्रेसीडेंट दूसरे देशों को दबाव में लेने के आदी हैं, वह इंदिरा गांधी की कार्रवाई से स्तब्ध रह गए. फिर भारत को सबक सिखाने के लिए सातवां बेड़ा (USS Enterprise समेत युद्धपोतों का एक समूह) बंगाल की खाड़ी में भेज दिया. इंदिरा उससे भी नहीं डरीं और सैन्य अभियान जारी रखा.
सोवियत संघ के साथ रणनीतिक समझौता
इंदिरा गांधी ने पहले ही इस खतरे को भांप लिया था. अगस्त 1971 में सोवियत संघ (USSR) के साथ 20 वर्षीय भारत-सोवियत संघ मैत्री, शांति और सहयोग संधि (Indo-Soviet Treaty of Peace, Friendship and Cooperation) पर हस्ताक्षर कर लिए थे. इस समझौते ने भारत को राजनीतिक और सैन्य सुरक्षा दी. अगर अमेरिका या चीन ने भारत पर हमला किया, तो सोवियत संघ भारत की मदद के लिए आगे आएगा.
इस संधि के कारण सोवियत नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में अमेरिकी सातवें बेड़े को जवाब देने के लिए अपनी पनडुब्बियां तैनात कर दीं. इस कूटनीतिक चाल ने अमेरिका और चीन के किसी भी संभावित हस्तक्षेप को रोक दिया.
इंदिरा गांधी की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति
इंदिरा गांधी ने अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव को संतुलित करने के लिए व्यापक कूटनीति अपनाई. उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की यात्राएं कीं. उन्हें समझाने की कोशिश की कि यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है. जब अमेरिका ने पाकिस्तानी सेना का समर्थन किया, तो इंदिरा गांधी ने सोवियत संघ, फ्रांस और कुछ अन्य देशों को भारत के पक्ष में लाने में सफलता पाई.
भारतीय सेना की रणनीतिक तैयारी और निर्णायक युद्ध
भारत ने 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के हवाई हमलों के जवाब में औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा की. भारतीय सेना ने 13 दिन में ही पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. 16 दिसंबर 1971 को ढाका में जनरल ए. ए. के. नियाज़ी ने 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था.
अमेरिका देखता रह गया और पाकिस्तान टूट गया
यानि अमेरिका भारत को रोकने में पूरी तरह असफल रहा. निक्सन की धमकियों का इंदिरा गांधी ने बैंड बजा दिया. वो केवल देखते रह गए. झल्लाते रहे. बांग्लादेश आज़ाद ही नहीं हुआ. उसे तुरंत अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी मिलनी शुरू हो गई. इंदिरा गांधी ने अमेरिका के खुले विरोध के बावजूद बांग्लादेश युद्ध में सैन्य कार्रवाई की और एक नए देश को जन्म दिया.
निक्सन नाराज तो थे लेकिन क्या कर पाते
इंदिरा गांधी की हिम्मत और साहस ने तब भारतीय राजनीति में खुद को “लौह महिला” के रूप में स्थापित कर दिया. 1971 के युद्ध के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर की भारत और इंदिरा गांधी के प्रति नाराजगी जारी रही, लेकिन वे सीधे तौर पर कोई और धमकी देने की स्थिति में नहीं थे.
निक्सन प्रशासन ने भारत को दबाव में लाने और उसे सजा देने के लिए कई कदम उठाए. भारत को दी जाने वाली आर्थिक और सैन्य सहायता में कटौती कर दी. अमेरिका ने वर्ल्ड बैंक और अन्य संस्थाओं के जरिए भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की लेकिन भारत ने सोवियत संघ और अन्य मित्र देशों से समर्थन लेकर इस असर को कम कर लिया.
रिचर्ड निक्सन को ही देना पड़ा इस्तीफा
जिस घमंडी रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी को धमकी दी, खुद उनका ही पतन हो गया. उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा. 1974 में वाटरगेट स्कैंडल के कारण निक्सन को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा. दूसरी तरफ, इंदिरा गांधी ने भारत को एक मजबूत वैश्विक शक्ति बनाने की दिशा में अपना काम जारी रखा.
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
March 02, 2025, 13:56 IST
कैसे तब इंदिरा अमेरिकी धमकी का बैंड बजाया, US प्रेसीडेंट की ही कर दी छुट्टी
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India Canada Conflict: डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन कनाडा को ‘फाइव आईज’ से बाहर करने की तैयारी में.

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India Canada Conflict : डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी हरदीप निज्जर की हत्या का आरोप भारत पर लगाया. अब ट्रंप प्रशासन कनाडा को ‘फाइव आईज’ से बाहर करने की तैयारी…और पढ़ें

डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन अब जस्टिन ट्रूडो के लिए सबसे बड़ी मुश्किल लेकर आ रहा है.
हाइलाइट्स
- ट्रंप प्रशासन कनाडा को ‘फाइव आईज’ से बाहर करने की तैयारी में है.
- ट्रूडो ने ‘फाइव आईज’ का नाम लेकर निज्जर हत्या का आरोप भारत पर लगाया था.
- ‘फाइव आईज’ में अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा शामिल हैं.
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जबसे सत्ता संभाली है, पूरी दुनिया में उथल पुथल मचा हुआ है. लेकिन सबसे ज्यादा मुसीबत में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो है. वही ट्रूडो जिन्होंने एक खालिस्तानी हरदीप निज्जर की हत्या में सीधे-सीधे भारत से दुश्मनी मोल ले ली. झूठे आरोप लगाए कि निज्जर की हत्या भारत सरकार के एजेंटों ने की है. इतना ही नहीं, बेशर्मी दिखाते हुए उन्होंने दुनिया के सबसे बेहतरीन खुफिया समूह ‘फाइव आईज’ (Five Eyes) का हवाला तक दे दिया. लेकिन भारत से दुश्मनी मोल लेकर वे ज्यादा दिन तक नहीं बच पाए. पहले सत्ता चली गई और अब खबर आ रही है कि ट्रंप प्रशासन कनाडा को ही ‘फाइव आईज’ ग्रुप से बाहर करने की तैयारी में है.
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, व्हाइट हाउस के बड़े अधिकारी और डोनाल्ड ट्रंप के करीबी सलाहकार पीटर नवारो ने अमेरिकी सरकार को सुझाव दिया है कि कनाडा को फाइव आईज ग्रुप से बाहर कर दिया जाए. फाइव आईज में अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा हैं. ये देश दुनियाभर की खुफिया सूचनाएं एक दूसरे से शेयर करते हैं. इसे दुनिया का सबसे ताकतवर इंटेलिजेंस नेटवर्क माना जाता है. इसका मकसद आतंकवाद को रोकना और नेशनल सिक्योरिटी के लिए काम करना है.
‘फाइव आईज’ और निज्जर कनेक्शन
‘फाइव आईज’ एक खुफिया संगठन है. यह ग्लोबल सर्विलांस (Global Surveillance) करता है और दुनिया भर में साइबर सुरक्षा, आतंकवाद, सैन्य गतिविधियों और अन्य खुफिया जानकारी समूह के सभी देशों से साझा करता है. इसमें इलेक्ट्रॉनिक कम्यूनिकेशन, इंटरनेट डेटा मॉनिटरिंग, सैटेलाइट ट्रैकिंग और साइबर जासूसी जैसे कई महत्वपूर्ण सर्विलांस होते हैं. भारत फाइव आईज का सदस्य नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में भारत अमेरिका और अन्य देशों के साथ खुफिया सहयोग बढ़ा रहा है. लेकिन 18 जून 2023 को जब निज्जर की हत्या हुई तो जस्टिन ट्रूडो ने इसी संगठन का नाम लेते हुए दावा कर दिया कि ‘फाइव आईज’ ने हमारे साथ खुफिया सूचना दी है कि निज्जर की हत्या में भारतीय खुफिया एजेंसियां शामिल हैं. हालांकि, भारत ने इसे बकवास बताया था.
जस्टिन ट्रूडो अलग-थलग पड़े
जस्टिन ट्रूडो ने फाइव आईज का नाम लेते हुए दावा तो कर दिया लेकिन अलग-थलग पड़ गए. कई देश उनसे नाराज हो गए. अब खबर आ रही है कि अमेरिका खुद कनाडा को इस महत्वपूर्ण खुफिया समूह से बाहर करने में लगा हुआ है. व्हाइट हाउस से जुड़े लोगों का कहना है कि नवारो ट्रंप से बार-बार कह रहे हैं कि अमेरिका को कनाडा पर और दबाव बनाना चाहिए और उसे फाइव आईज से निकाल देना चाहिए. यह अभी साफ नहीं है कि ट्रंप इस बारे में क्या सोचते हैं, लेकिन उनके अधिकारी इस पर बात कर रहे हैं.
February 25, 2025, 23:16 IST
ट्रूडो जिस Five Eyes के दम पर उछल रहे थे, ट्रंप उसी से बाहर करने की तैयारी में
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सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर की अंतरिक्ष से वापसी का रास्ता साफ.

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Sunita Williams and Butch Wilmore: सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर की अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से वापसी का रास्ता साफ हो गया है. उनके स्थान पर नए अंतरिक्ष यात्री पहुंच गए हैं. वापसी अगले सप्ताह संभावित है.

सब कुछ ठीक रहा तो अगले सप्ताह सुनीता विलियम्स की वापसी हो सकती है.
हाइलाइट्स
- सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर अगले सप्ताह लौटेंगे.
- चार नए अंतरिक्ष यात्री ISS पहुंचे.
- नए अंतरिक्ष यात्री अमेरिका, जापान, रूस से हैं.
लंबे समय से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) में फंसी भारतीय मूली का अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और अमेरिकी बुच विल्मोर की वापसी का रास्ता साफ हो गया है. इन दोनों यात्रियों के बदले स्पेस स्टेशन में रहने के लिए धरती से दो यात्री वहां पहुंच गए हैं. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा लंबे समय से सुनीता और विल्मोर को वापस लाने की कोशिश कर रहा है. अब विल्मोर और सुनीता के स्थान पर अन्य अंतरिक्ष यात्रियों को तैनात कर दिया गया है. एक दिन पहले रवाना हुआ स्पेसएक्स का अंतरिक्ष यान रविवार को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुंच गया. इसके साथ ही ये अंतरिक्ष यात्री वहां पहुंचे हैं. अब इसी अंतरिक्ष यान से सुनीता और विल्मोर की वापसी होगी.
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पहुंचे चार नए अंतरिक्ष यात्री अमेरिका, जापान और रूस का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. वे कुछ दिन विलियम्स और विल्मोर से स्टेशन के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे. माना जा रहा है कि अगर मौसम सही रहा तो दोनों फंसे अंतरिक्ष यात्रियों को अगले सप्ताह फ्लोरिडा के तट के निकट जलक्षेत्र में उतारा जाएगा.
बीते साल 5 जून को अंतरिक्ष में गई थी सुनीता
विल्मोर और विलियम्स बोइंग के नए स्टारलाइनर कैप्सूल से पांच जून को केप कैनवेरल से रवाना हुए थे. दोनों एक सप्ताह के लिए ही गए थे लेकिन अंतरिक्ष यान से हीलियम गैस के रिसाव और वेग में कमी के कारण ये लगभग नौ माह से अंतरिक्ष स्टेशन में फंसे हुए हैं.
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी के कैनेडी अंतरिक्ष केंद्र से रवाना हुए अंतरिक्ष यात्रियों के नए दल में नासा से ऐनी मैक्लेन और निकोल एयर्स शामिल हैं. वे दोनों सैन्य पायलट हैं. इनके अलावा जापान के ताकुया ओनिशी और रूस के किरिल पेस्कोव भी रवाना हुए हैं और दोनों विमानन कंपनियों के पूर्व पायलट हैं. ये चारों लोग विल्मोर और विलियम्स के धरती के लिए रवाना होने के बाद अगले छह महीने अंतरिक्ष स्टेशन में बिताएंगे, जिसे सामान्य अवधि माना जाता है.
March 16, 2025, 11:27 IST
गुड न्यूज! सुनीता विलियम्स और बुच इस दिन धरती पर उतरेंगे, नई टीम ISS पहुंची
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US Ukraine Mineral Deal Russia: डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के बीच प्राकृतिक संसाधनों पर डील

Last Updated:
Russia Ukraine War: डोनाल्ड ट्रंप यूक्रेन के प्राकृतिक संसाधनों पर नजर गड़ाए हुए हैं. रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका और यूक्रेन ने पुनर्निर्माण और संसाधनों को लेकर एक डील पर सहमति जताई है. हालांकि, यूक्रेन की सुरक्…और पढ़ें

अमेरिका और यूक्रेन में होगी डील. (Reuters)
हाइलाइट्स
- यूक्रेन और अमेरिका ने संसाधनों पर डील की सहमति जताई
- यूक्रेन अपने दुर्लभ खनिज देने को तैयार है
- जेलेंस्की वाशिंगटन जाकर डील साइन कर सकते हैं
वॉशिंगटन: डोनाल्ड ट्रंप की नजर यूक्रेन के प्राकृतिक संसाधनों पर है और वह इसे पाने में कामयाब होते दिख रहे हैं. CNN की रिपोर्ट के मुताबिक एक यूक्रेनी अधिकारी ने बताया कि अमेरिका और यूक्रेन ने प्राकृतिक संसाधनों और यूक्रेन के पुनर्निर्माण पर एक डील पर सहमति जताई है. रिपोर्ट में सूत्रों का हवाला देते हुए कहा गया कि यह सहमति तब बनी है जब समझौते से जुड़े ड्राफ्ट में सभी अस्वीकार्य शर्तों को हटा दिया गया. अब इसमें साफ तौर से बताया गया है कि यह डील यूक्रेन की सुरक्षा और शांति में किस तरह योगदान देगा. अमेरिका की ओर से समझौते की शर्तों पर सहमति की पुष्टि नहीं की है. ट्रंप लगातार यूक्रेन पर दबाव बना रहे थे कि एक ऐसी डील हो.
हालांकि यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की अगले कुछ दिनों में वाशिंगटन जा सकते हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को ओवल ऑफिस से कहा, ‘मैंने सुना है कि वह (जेलेंस्की) शुक्रवार को आ रहे हैं. निश्चित तौर पर अगर वह चाहें तो मेरे लिए ठीक है कि डील को वह मिलकर साइन करें. मैं मानता हूं कि यह एक बड़ा समझौता है. बहुत बड़ा समझौता है.’ इससे पहले भी रिपोर्ट्स आई थीं कि यूक्रेन एक समझौता करने के लिए तैयार है, जो अमेरिका को यूक्रेन के दुर्लभ खनिजों को हासिल करने देगा. इसके बदले में अमेरिका यूक्रेन के पुनर्निर्माण कोष में शामिल होगा. सूत्र ने बताया कि अमेरिका ने ड्राफ्ट में सुरक्षा गारंटी शामिल करने का विरोध किया था.
जेलेंस्की नहीं हुए थे तैयार
यूक्रेन अपना दुर्लभ खनिज देने को तैयार है, लेकिन इसके बावजूद समझौते में उसकी सुरक्षा को लेकर सटीक शर्तें नहीं हैं. रिपोर्ट के मुताबिक संसाधन समझौतों से जुड़े कुछ जटिल विवरणों पर बाद की वार्ताओं में बातचीत की जाएगी. अमेरिकी और यूक्रेनी राष्ट्रपति सुरक्षा गारंटी पर व्यक्तिगत रूप से चर्चा कर सकते हैं. इससे पहले ट्रंप ने यूक्रेन को मदद के बदले खनिजों में 500 बिलियन डॉलर की हिस्सेदारी मांगी थी, लेकिन जेलेंस्की ने इसे खारिज कर दिया था. रिपोर्ट के मुताबिक जेलेंस्की ने इसे इसलिए खारिज किया था, क्योंकि इसमें अमेरिका की कोई भागीदारी नहीं थी, जबकि यूक्रेन से सब कुछ देने की उम्मीद की गई थी.
यूक्रेन पर दबाव बना रहा यूक्रेन
रूस और यूक्रेन युद्ध को 24 फरवरी को तीन साल हो गए. युद्ध खत्म करने को लेकर संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव लाया गया, जिसमें अमेरिका रूस के साथ खड़ा दिखा. अमेरिका ने रूस को हमले के लिए दोषी ठहराने से इनकार कर दिया. यह अमेरिका का एक अलग ही रुख दिखाता है. इस प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र में सहमति बनी. भारत ने इस मुद्दे पर वोटिंग से इनकार किया.
एजेंसी इनपुट के साथ.
New Delhi,New Delhi,Delhi
February 26, 2025, 07:13 IST
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