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स्पेन-मोरक्को के बीच 85 मीटर की दुनिया की सबसे छोटी सीमा

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क्या आप जानते हैं कि दुनिया की सबसे छोटी अंतरराष्ट्रीय सीमा मात्र 85 मीटर लंबी है? ये सीमा एक चट्टान है, जिसे पेनोन दे वेलेज दे ला गोमेरा के नाम से जाना जाता है, जो उत्तरी अफ्रीका में है. जानिए कैसे समंदर के दू…और पढ़ें

अगर आपसे पूछा जाए कि दुनिया का सबसे लंबा इंटरनेशनल बॉर्डर किन दो देशों के बीच है, तो आपका जवाब कनाडा और अमेरिका होगा. ये दोनों देश एक-दूसरे से सबसे लंबी अंतरराष्ट्रीय शेयर करते हैं. लेकिन धरती पर सबसे छोटा इंटरनेशनल बॉर्डर कौन सा है? यह किन दो देशों के बीच है? तो बहुत कम लोगों को इसका जवाब पता होगा. ऐसे में आपको बता दें कि दुनिया की सबसे छोटी सीमा केवल 85 मीटर की है, जो स्पेन और मोरक्को को जोड़ती है. आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन यह एक छोटी चट्टान से जुड़ी है. इस चट्टान का नाम पेनोन दे वेलेज दे ला गोमेरा है, जो उत्तरी अफ्रीका में है. यह चट्टान बहुत खास है, क्योंकि यह दुनिया की सबसे छोटी राष्ट्रीय सीमा का हिस्सा है. इस चट्टान का क्षेत्रफल करीब 19,000 वर्ग मीटर है. सन 1564 में स्पेन के एक सेनापति पेड्रो दे एस्टोपिनन ने इस पर कब्जा किया था, तब से यह स्पेन का हिस्सा है.
मोरक्को ने कई बार इसे अपना बताया, लेकिन स्पेन ने कभी इसे छोड़ा नहीं. वहां स्पेन के सैनिक रहते हैं जो इसकी रक्षा करते हैं. बता दें कि स्पेन का जमीनी बॉर्डर करीब 2000 किलोमीटर लंबा है. यह अंतरराष्ट्रीय सीमा पुर्तगाल और फ्रांस से लगती है. लेकिन स्पेन के पास कई देशों से जुड़ी हुई छोटी सीमाएं भी हैं, जैसे अंडोरा, जिब्राल्टर (यूनाइटेड किंगडम) और मोरक्को के साथ. इनमें से मोरक्को के साथ 85 मीटर की सीमा सबसे छोटी है. यह सीमा पेनोन दे वेलेज को मोरक्को के तट से जोड़ती है. यह चट्टान स्पेन के उन खास इलाकों में से एक है, जो उत्तरी अफ्रीका में हैं. इनमें सेउटा, मेलिला, पेनोन दे अल्हुसेमास, चफारिनास द्वीप और इस्ला दे पेरेजिल भी शामिल हैं. यह स्पेन के अधीन हैं, लेकिन इन्हें पूरा देश नहीं माना जाता. पहले यह चट्टान एक आइलैंड था. सन 1934 में एक भूकंप आया और उसने एक छोटा रास्ता बना दिया, जिसके बाद यह द्वीप एक प्रायद्वीप बन गया. तब से यह 85 मीटर की सीमा दुनिया की सबसे छोटी सीमा कहलाती है.
इस जगह पर अब सिर्फ स्पेन के सैनिक रहते हैं. वे उसकी निगरानी करते हैं और हर महीने उनकी टुकड़ी बदलती है. आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन बता दें कि वहां पानी और बिजली भी नहीं है. ऐसे में स्पेन की नौसेना जहाजों से सैनिकों के लिए सामान लाती है. अक्सर मोरक्को इस पर दावा करता है. सन 2012 में तो कुछ लोग इस छोटे पहाड़ पर चढ़ गए, जो सेउटा और मेलिला को आजाद करने वाली एक कमेटी से थे. उन्होंने स्पेन का झंडा हटाकर मोरक्को का झंडा लगा दिया. यह सब कुछ मिनटों तक चला. स्पेन के सैनिकों ने झट से मोरक्को का झंडा हटाया और उन लोगों को पकड़ लिया. तब इसे एक छोटा आक्रमण माना गया. यह आखिरी बार था जब इस चट्टान पर कोई बाहर से आया. पेनोन दे वेलेज भले ही छोटी और सुनसान जगह हो, लेकिन स्पेन इसे मोरक्को को नहीं सौंपना चाहता, जबकि यह उसके जमीनी बॉर्डर से काफी दूर है.
March 18, 2025, 12:46 IST
85 मीटर लंबा है दुनिया का सबसे छोटा बॉर्डर, जानिए कैसे स्पेन के कब्जे में आया?
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युट्यूब देखकर आ गए थे बागेश्वर धाम,नहीं लगी अर्जी तो… अब ढाबे में पति पत्नी बर्तन धोने को मजबूर

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Bageshwar Dham News: पिछले साल 13 अगस्त 2024 को युटयूब में बालाजी की फोटो देखी तो दर्शन करने की इच्छा हुई. फिर बागेश्वर धाम आने का मन बना लिया. हमनें गुरूजी के साथ बागेश्वर धाम से सनातन हिंदू एकता पदयात्रा में …और पढ़ें

बागेश्वर धाम में बातचीत करते श्रद्धालु
हाइलाइट्स
- यूट्यूब पर बालाजी की फोटो देखकर बागेश्वर धाम आए.
- पैसों की कमी के कारण ढाबे में काम करने को मजबूर.
- 20 दिनों से बागेश्वर धाम में रुके हुए हैं.
बागेश्वर धाम श्रद्धालु. छतरपुर जिले के ग्राम गढ़ा स्थित बागेश्वर धाम में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं. यहां आकर श्रद्धालु मनोकामनाएं लेकर आते हैं. बिहार के सिवान जिले से पत्नी के साथ बागेश्वर धाम आए राकेश तिवारी बताते हैं कि पत्नी ने युट्यूब में बालाजी की फोटो देखी थी तो दर्शन करने की इच्छा हुई. इसके बाद पंडित धीरेन्द्र शास्त्री की सनातन हिंदू एकता पद यात्रा में भी शामिल हुए थे. फिलहाल, पिछले 20 दिन से बागेश्वर धाम में हैं. हालांकि, पैसों की किल्लत भी हुई इसलिए ढाबे में भी काम किया लेकिन बालाजी बागेश्वर को छोड़कर जाने का मन ही नहीं किया.
बिहार से आए श्रद्धालु ने कहा
बिहार के सिवान जिले से बागेश्वर धाम आए श्रद्धालु राकेश तिवारी बताते हैं कि हम पति-पत्नी बागेश्वर धाम में हुए 251 कन्या विवाह के 2 दिन पहले ही आ गए थे. जब से लेकर अभी तक बागेश्वर धाम में ही रुके हैं. गुरुजी बिहार के गोपालगंज चले गए तो यहां होली तक रहे. हालांकि, बागेश्वर धाम में रहने के लिए दरबार हाल है और भोजन के लिए अन्नपूर्णा रसोईया भी है. यहां इतनी हेल्प तो मिल जाती थी लेकिन कुछ भी और चीजों की जरूरत पड़ती है जिसके लिए रुपए चाहिए होते हैं. रुपयों की जरूरत थी तो और इतने दिन से बागेश्वर धाम में गुरुजी के लिए रुके हैं इसलिए 2 अलग-अलग ढाबे में 5-5 दिन काम भी किया.
ढाबे पर पत्नी साथ किया काम
बिहार जाने के लिए खर्च-पानी लगना था और जेब में रुपए बचे नहीं थे इसलिए ढाबे में पत्नी साथ रोटी भी बनाई, लोगों को खाना भी खिलाया, भोजन भी ढाबे पर करते थे.
राकेश बताते हैं कि पत्नी को बाधा थी तो महाराज जी के यहां अर्जी लगाने आए थे. महाराज जी से मिलना तो नहीं हो पाया. इसलिए बागेश्वर धाम में रुके रहे. इसके बाद गुरुजी बिहार के गोपालगंज में कथा करने चले गए. फिर पता चला कि गुरुजी होली मनाने बागेश्वर धाम आएंगे इसलिए रुक गय थे.
युट्यूब से देखकर आ गए बागेश्वर धाम
राकेश की पत्नी बताती हैं कि पिछले साल 13 अगस्त 2024 को युटयूब में बालाजी की फोटो देखी तो दर्शन करने की इच्छा हुई. फिर बागेश्वर धाम आने का मन बना लिया. हमनें गुरूजी के साथ बागेश्वर धाम से सनातन हिंदू एकता पदयात्रा में 160 किमी पैदल भी चले हैं.
Chhatarpur,Madhya Pradesh
March 18, 2025, 17:24 IST
युट्यूब देखकर आ गए थे बागेश्वर धाम…अब ढाबे में पति पत्नी बर्तन धोने को मजबूर
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एक हरी-भरी जन्नत. – News18 हिंदी

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त्र्यंबक महाराज के यहां चूहे, तोते, खरगोश जैसे कई जानवर भी हैं. पक्षियों की चहचहाहट से यह बागवानी हमेशा गूंजती रहती है. हालांकि, यहां हर किसी को प्रवेश नहीं मिलता क्योंकि बहुत से लोग आकर पौधों और जानवरों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. लेकिन जो लोग जान-पहचान वाले होते हैं, वे अंदर आकर बागवानी की सैर कर सकते हैं.
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एयरलाइंस बिजनेस क्लास सीटें अपग्रेड क्यों नहीं करती? जानें कारण

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क्या आपने कभी सोचा कि हवाई जहाज की बिजनेस क्लास में सीटें खाली क्यों रहती हैं, जबकि फ्रिक्वेंट फ्लायर्स अपग्रेड की उम्मीद में इंतज़ार करते हैं? कोरा पर एक यूजर ने यह सवाल पूछा. ऐसे में बता दें कि इसके पीछे एयरल…और पढ़ें

Canva से ली गई बिजनेस क्लास की सांकेतिक तस्वीर.
हवाई जहाज की यात्रा में लोग तेजी से एक जगह से दूसरे जगह पहुंच जाते हैं. ट्रेन-बस की तुलना में हवाई सफर बहुत महंगा होता है, लेकिन लोग जल्दबाजी में इसका इस्तेमाल करते हैं. लेकिन प्लेन में बिजनेस क्लास की सीटें इकोनॉमी क्लास की तुलना में काफी महंगी होती हैं. कई बार तो ये सीटें यूं ही खाली रहती हैं, लेकिन ट्रेनों की तरह यहां पर सीटें अपग्रेड नहीं की जाती हैं. आखिर क्यों, एयरलाइंस कंपनियां अक्सर बिजनेस क्लास की सीटें खाली छोड़ देती हैं और अपने फ्रिक्वेंट फ्लायर्स की सीटों को अपग्रेड करने से बचती हैं? हाल ही में एक यूजर ने कोरा पर यह सवाल पूछा. ऐसे में आपको बता दें कि एयरलाइंस कंपनियां ऐसा महज संयोग से नहीं करतीं, बल्कि इसके पीछे कई ठोस कारण हैं. आइए इन वजहों को समझते हैं.
प्लेन के अंदर इकोनॉमी सीटों को बिजनेस क्लास में अपग्रेड न करने की सबसे बड़ी वजह है मुनाफा. एयरलाइंस का लक्ष्य हर सीट भरना नहीं, बल्कि ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाना है. बिजनेस क्लास की टिकटें इकोनॉमी से 3 से 10 गुना महंगी होती हैं. ये सीटें खासतौर पर उन बिजनेस यात्रियों के लिए रखी जाती हैं जो आखिरी वक्त पर टिकट बुक करते हैं और ऊंची कीमत चुकाने को तैयार रहते हैं. अगर फ्रिक्वेंट फ्लायर्स को मुफ्त या कम पैसे में अपग्रेड दे दिया जाए, तो ये महंगी टिकट बिकने का मौका हाथ से निकल सकता है. इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन (IATA) के मुताबिक, एयरलाइंस प्रति सीट कमाई (यील्ड) को प्राथमिकता देती हैं, न कि हर सीट भरने को.
Quora Question
Question: Why do airlines leave empty business seats instead of upgrading their frequent flyers?
Description: A discussion on Quora exploring why airlines often keep business class seats vacant instead of offering free upgrades to loyal customers, with insights from various contributors.
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ऑपरेशनल जरूरतें और बिजनेस क्लास की शान भी है वजह
एयरलाइंस कुछ बिजनेस क्लास सीटें रिज़र्व में रखती हैं, ताकि अचानक आई मुश्किलों से बच सकें. मान लीजिए कि पहली फ्लाइट कैंसिल हो गई. दूसरी फ्लाइट में पहले से ही सवारी हैं. अगर बिजनेस क्लास की सीटें खाली हैं, तो उसमें पहली फ्लाइट के वीआईपी पैसेंजर को बैठा दिया जाता है. फिर बाकी अन्य सीटों पर दूसरे पैसेंजर्स को जगह दी जाती है. कई बार फ्लाइट कैंसिल होने पर इकोनॉमी क्लास के पैसेंजर को दूसरी फ्लाइट में बिजनेस क्लास की सीटें मिल जाती हैं. ऐसे में पहले से अपग्रेड दे देने पर एयरलाइंस को परेशानी हो सकती है. इसके अलावा बिजनेस क्लास की शान भी एक वजह है. दरअसल, एयरलाइंस इसे एक लग्ज़री अनुभव के तौर पर पेश करती हैं, जहां बड़ी सीटें, स्वादिष्ट खाना और प्रायोरिटी बोर्डिंग मिलता है. अगर बार-बार फ्रिक्वेंट फ्लायर्स को अपग्रेड मिलने लगे, तो यह खासियत फीकी पड़ सकती है. CBS News पर मशहूर ट्रैवल एक्सपर्ट पीटर ग्रीनबर्ग ने एक बार कहा था, “बिजनेस क्लास की वैल्यू उसकी एक्सक्लूसिविटी में है.” इसे आम करने से उसकी चमक कम हो सकती है.
ये सब भी हैं अपग्रेड न करने की वजह!
ऊपर बताए गए कारणों के अलावा भी कई अन्य वजहें हैं, जिसकी वजह से एयरलाइंस कंपनियां अपग्रेडेशन से बचती हैं. उदाहरण के तौर पर फ्रिक्वेंट फ्लायर्स को माइल्स (रिवॉर्ड पॉइंट्स) मिलते हैं, लेकिन एयरलाइंस चाहती हैं कि वे इनका इस्तेमाल पहले से टिकट बुक करने में करें, न कि आखिरी वक्त पर अपग्रेड के लिए. अपग्रेड की सीटें सीमित होती हैं और खास नियमों के तहत दी जाती हैं. मुफ्त अपग्रेड देने से एयरलाइंस को सस्ती बिजनेस टिकट बेचने या माइल्स के साथ अतिरिक्त पैसे लेने का मौका नहीं मिलता. इसके अलावा व्यवस्था और निष्पक्षता के लिहाज से भी एयरलाइंस अपग्रेड से बचती हैं. यह तय करना आसान नहीं कि अपग्रेड किसे मिले, सबसे ज्यादा माइल्स वाले को, हाई स्टेटस वाले को या किसी और को? बार-बार ऐसा करने से दूसरे वफादार ग्राहक नाराज़ हो सकते हैं. हालांकि, कभी-कभी एयरलाइंस अपग्रेड देती हैं, खासकर जब इकोनॉमी भर जाए और बिजनेस क्लास की सीटें बिकने की उम्मीद कम हो. IATA के 2023 के डेटा के अनुसार, पिछले साल औसतन 82% सीटें भरी थीं, फिर भी कई बिजनेस क्लास केबिन खाली रहे. इसका मतलब है कि एयरलाइंस हर सीट भरने से ज्यादा मुनाफे और रणनीति को तरजीह देती हैं.
March 18, 2025, 16:13 IST
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