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सांप खुद को पराबैंगनी रंग में बदल सकते हैं, नई स्टडी का खुलासा.

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वैज्ञानिकों ने पाया कि सांप खुद को ऐसे रंग का भी जो इंसान नहीं देख सकते. यानी वे खुद को पराबैंगनी रंग में बदल सकते हैं. यह रंग शिकारियों से बचने में मदद करता है. 110 प्रजातियों पर अध्ययन किया गया.

‘इंसान को ना दिखने वाले रंग’ इस्तेमाल करते हैं सांप, धोखा देने में आते हैं काम

सांप केवल उन्हीं रंगो के नहीं दिखते जो कि इंसानों को दिखते हैं.

सापों के बारे में लोगों को बहुत सारे भ्रम होते हैं. ऐसा भारत जैसे देश में ज्यादा होता है. कुछ गलतफहमियां धर्म की वजह से है तो कुछ लोगों में सदियों से चली आ रही गलत धारणाएं आज भी किवदंती के तौर पर प्रचलित हैं. यही वजह है कि सांप वैज्ञानिकों के लिए भी दिलचस्प विषय हैं. यही कारण है कि कई बार वैज्ञानिकों को भी सांप के बारे में नई जानकारी मिलती है. नई स्टडी में खुलासा हुआ है कि सांप  खुद को ऐसे रंग का बना सकते हैं, जिन्हें इंसान नहीं देख सकता है. इसका उन्हें खास फायदा भी होता है.

सांपों के पराबैंगनी रंग
मिशिगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने  हाल ही में अपने अध्ययन में सांपों में खुद को “पराबैगनी रंग का करने” का पता लगाया है. उन्होंने पाया है कि सांप ऐसा कुछ पक्षियों जैसे शिकारियों से बचने के लिए ऐसा करते हैं. शोधकर्ताओं का कहना का कहना हैकि जानवरों में पराबैंगनी रंग की रिसर्च का संबंध अधिकांश तौर पर  इंसान रंगों को कैसे समझते हैं इसी नजरिए से होता रहा है. सांपों के मामले में वैज्ञानिक जानना चाहते थे कि आखिर इन रंगों का क्या उपयोग होगा.

अलग अलग प्रजातियों के सांप
उन्होंने अंदाजा लगाया कि या तो ये रंग शिकारियों को धोखा देने (छलावरण) की वजह से है या फिर किसी तरह का पर्यारवरण संबंधी संकेत है. नेचर कम्यूनिकेशन में प्रकाशित रिसर्च में 110 सांप प्रजातियों का अध्ययन किया जो पेरू से लेकर कोलोराडो तक पकड़े गए थे. इनमें से कई प्रजातियां पराबैंगनी रंगों को देख सकते हैं जैसा कि इंसान नहीं कर पाते हैं.

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सांप पराबैंगनी रंगों का उपयोग खुद की रक्षा के लिए करते हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

समय और जगह
उन्होंने खास तरह के कैमरा आदि से सांपों की तस्वीरें ली और उन पराबैंगनी रंगों का अध्ययन किया जो सांप कुदरती तौर पर  प्रतिबिम्बित करते हैं और जो इंसानों को दिखते नहीं हैं. इसके बाद उन्होंने रंगों के प्रभाव का सांपों की उम्र, लिंग, आवास आदि के लिहाज से अध्ययन किया. उन्हें चौंकाने वाली जानकारी मिली. उन्होंने पाया कि पेड़ों और टहनियों के बीच रहने वाले सांप ज्यादा पराबैंगनी रंग प्रतिबिम्बित करते हैं. वहीं रात को भी ऐसा ज्यादा होता है.

यह भी पढ़ें: अपनी बाइक पर स्टंट कर रहा था लड़का, पता नहीं क्या हुआ पीछे वाले गिर गए, क्या आप समझे कारण?

देखा भी यही गया है कि जो पक्षी पराबैंगनी रंग देख पाते हैं, वही सांपों का सबसे ज्यादा शिकार भी करते हैं. पेड़ की  पत्तियां आदि भी पराबैंगनी रंगों को प्रतिबिम्बित करती हैं इसलिए सांपों के लिए शिकारी जानवरों को धोखा देना आसान हो जाता है. दिलचस्प बात ये है कि इस मामले में नर और मादाओं में अंतर नहीं होता है, जबकि एक  ही प्रजाति के अलग अलग जगह पर रहने वाले सांप अलग अलग रंग प्रतिबिम्बित करते हैं.

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‘हाय कितना क्यूट है ये’, हुडी में लड़का गा रहा था रैप, महफिल लूट गए लाल जैकेट वाले के एक्सप्रेशन

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खूबसूरत वादियों में बैठे हुए एक पीले हुडी वाला बच्चा ‘तू है कहां’ गाने को एक सांस में गा रहा है. बच्चे के टैलेंट का वीडियो तो वायरल हो रहा है लेकिन इसमें महफिल लूटने का काम उसके बगल बैठा दोस्त कर रहा है.

'हाय कितना क्यूट है ये', हुडी में लड़का गा रहा था रैप, महफिल लूट गया दोस्त

बच्चों का क्यूट वीडियो हुआ वायरल. (Credit- Instagram/jp_negi_travelholic )

देश-दुनिया के कोने-कोने में टैलेंट बिखरा हुआ है. पहले जहां हम ज्यादातर लोगों को जान नहीं पाते थे, वहीं सोशल मीडिया के ज़माने में मिनटों में इंसान का टैलेंट पूरी दुनिया में छा जाता है. सिर्फ कुछ सेकंड का वीडियो वायरल हो जाता है और जिसे कोई नहीं जानता था, उसे हर कोई जान जाता है. इस वक्त एक ऐसा ही छोटे बच्चे का वीडियो वायरल हो रहा है.

खूबसूरत वादियों में बैठे हुए एक पीले हुडी वाला बच्चा ‘तू है कहां’ गाने को एक सांस में गा रहा है. बच्चे के टैलेंट का वीडियो तो वायरल हो रहा है लेकिन इसमें महफिल लूटने का काम उसके बगल बैठा दोस्त कर रहा है. हिमाचल प्रदेश के एक छोटे बच्चे का वीडियो चर्चा में है, जिसमें वह ज़ैन (ZAYN) के गाने ‘तू है कहां’ को गा रहा है.

महफिल लूट गया ‘दोस्त’
वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि एक छोटा सा बच्चा ‘Tu Hai Kahan’ गा रहा है. वहीं उसके साथ उसका दोस्त भी लाल रंग की जैकेट पहनकर बैठा हुआ है. लोगों को मासूम बच्चे का ये अंदाज इतना पसंद आया कि उन्होंने इसे वीडियो का बेस्ट पार्ट बताया है. बच्चा अपने दोस्त को हाइप करने के लिए इतने ज़बरदस्त एक्सप्रेशन दे रहा है कि देखने वाले बिना उसे प्यार किए नहीं रह पाएंगे.

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जिम में ही कसरत करते हुए कर सकेंगे सालसा डांस, नहीं देनी होगी अलग से फीस, मशीन ने दिया आइडिया!

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gym salsa machine: एक अनोखे वीडियो में जिम में कसरत कर रहा शख्स सालसा डांस करता दिख रहा है. लोगों को इस तरह की मशीन खूब पसंद आई है. कोई इसे डांस करने के लिए हासिल करना चाहता है तो कोई कमर और पीठ दोनों की कसरत क…और पढ़ें

जिम में कसरत करते हुए कर सकेंगे सालसा डांस, कमर पीठ की भी होगी वर्जिश, मशीन ने

लोगों को यह मशीन कई कारणों से पसंद आ रही है. (तस्वीर: Instagram video grab)

क्या आप जिम में कसरत करने से बोर हो जाते हैं? या क्या आपको जिम और डांस में से किसी एक को चुनना पड़ रहा है? क्या आप चाहते हैं कि जिम में कसरत करते हुए डांस भी कर सकें? लेकिन उसके लिए आपको अलग से पैसे ना देने पड़ें?  सोशल मीडिया पर एक वायरल वीडियो ने आपकी ऐसी समस्याओं का अनूठा हल निकाला है. इसमें एक ऐसी मशीन दिखाई गई है जिसमें जिम में कसरत करते समय ही आपकी डांस करने की हसरत पूरी हो सकती है. डांस भी ऐसा वैसा नहीं, मशीन आपको सालसा डांस कराएगी.

बिलकुल सालसा डांस!
जी हां जिम कि इस मशीन को ऐसा डिजाइन किया गया है जिसमें एक शख्स वैसे तो जिम में साइकिल मशीन की तरह पैर चला रहा है. लेकिन उसके शरीर की गतिविधि सालसा डांस के स्टेप्स की तरह दिखाई देती है. बैकग्राउंड म्यूजिक भी वीडियो में ऐसा तड़का लगा रहा है कि अगर गौर से ना देखा गया तो लगेगा कि कोई सालसा डांस ही कर रहा है.

कैसे काम करती है ये मशीन?
वीडियो में एक शख्स जिम में एक अनोखी मशीन पर पैर चला रहा है जिसके साथ उसके शरीर के मूवमेंट्स डांस की तरह लग रहे हैं. साइकिल मशीन में पैडल आम साइकिल के तरह आगे पीछे चलते हैं, लेकिन इस मशीन में पैडल की दिशा कुछ अलग है. इसमें आपको पैडल दायें से बायें घुमाने होंगे. बाकी मशीन का हिस्सा एक स्टेशनरी साइकिल की तरह है.

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OMG! ना ईंट-ना सीमेंट, भारत में खुली अनोखी फैक्ट्री, देख लोग रह गए दंग!

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गुड़गांव की Control Z फैक्ट्री, बांस और मिट्टी से बनी भारत की पहली फैक्ट्री है, जो पुराने फोन को नया बनाती है. फाउंडर युग भाटिया ने इसे सस्टेनेबिलिटी के तहत बनाया.

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बांस

बांस की लकड़ियों और मिट्टी से बनी फैक्ट्री

हाइलाइट्स

  • गुड़गांव में Control Z फैक्ट्री बांस और मिट्टी से बनी है.
  • यह फैक्ट्री मोबाइल रिपेयरिंग का काम करती है.
  • फैक्ट्री पर्यावरण के अनुकूल और सस्टेनेबल मटेरियल से बनी है.

दिल्ली: गुड़गांव में स्थित एक अनोखी फैक्ट्री Control Z इन दिनों काफी चर्चा में है. इस फैक्ट्री की खासियत यह है कि इसे पूरी तरह बांस और मिट्टी से बनाया गया है. भारत की यह पहली ऐसी फैक्ट्री है, जिसमें किसी भी तरह की ईंट या कंक्रीट का इस्तेमाल नहीं किया गया. खास बात यह है कि यह फैक्ट्री मोबाइल रिपेयरिंग का काम करती है, जहां पुराने फोन को नया बनाया जाता है.

कैसे आया यह अनोखा आइडिया?
Control Z के फाउंडर युग भाटिया ने बताया कि उनका काम सस्टेनेबिलिटी यानी पर्यावरण के अनुकूल समाधान पर आधारित है. वह पुराने फोन खरीदकर उन्हें रिपेयर कर नए जैसे फोन में बदलते हैं. इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने फैसला किया कि उनकी फैक्ट्री भी सस्टेनेबल मटेरियल से बनाई जाए.
युग भाटिया ने कहा कि “हम जो काम कर रहे हैं, वह पर्यावरण को बचाने की दिशा में एक कदम है. हम पुराने फोन को रिसाइकिल कर नया बना रहे हैं, तो क्यों न हमारी फैक्ट्री भी पूरी तरह इको-फ्रेंडली हो? इसी सोच के साथ हमने इस फैक्ट्री को बांस और मिट्टी से बनाने का फैसला किया.”

सबसे बड़ी चुनौती
युग भाटिया ने बताया कि, इस तरह की फैक्ट्री पहले कभी भारत में नहीं बनाई गई थी, इसलिए इसे बनाना एक बड़ी चुनौती थी. सबसे बड़ी दिक्कत मास्टर कारीगरों की कमी थी, क्योंकि इस तरह का निर्माण कार्य केवल पश्चिम बंगाल और असम के कुछ विशेषज्ञ ही कर सकते थे. उन्हें दिल्ली लाकर काम करवाना बेहद मुश्किल था.
इसके अलावा, उच्च गुणवत्ता वाले बांस की जरूरत थी, जो भारत में सिर्फ नॉर्थ-ईस्ट रीजन में मिलता है. इसे गुड़गांव तक लाना और संरचना तैयार करना भी एक चुनौतीपूर्ण काम था.

कैसा दिखता है यह अनोखा स्ट्रक्चर?
यह पूरी फैक्ट्री लकड़ी और मिट्टी से बनी है. इसकी दीवारें मिट्टी और बांस से बनाई गई हैं, जिससे गर्मी में ठंडक बनी रहती है और सर्दी में गर्माहट मिलती है. इस तरह का निर्माण प्राकृतिक संसाधनों का सही उपयोग करने का बेहतरीन उदाहरण है.

सस्टेनेबिलिटी की मिसाल
बांस और मिट्टी से बनी यह फैक्ट्री पर्यावरण के लिए बेहद अनुकूल है. यह परियोजना साबित करती है कि यदि सही सोच और प्रयास किए जाएं तो निर्माण के लिए पर्यावरण के अनुकूल विकल्प अपनाए जा सकते हैं. युग भाटिया का यह कदम भारत में सस्टेनेबल कंस्ट्रक्शन को बढ़ावा देने में एक मिसाल साबित हो सकता है.

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