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डोनाल्ड ट्रंप का कांग्रेस में भाषण: भारत, चीन और बाइडन पर निशाना.

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Donald Trump Speech Fact Check: डोनाल्ड ट्रंप ने कांग्रेस को संबोधित करते हुए भारत-चीन टैरिफ वार, रूस-यूक्रेन युद्ध और पेरिस जलवायु समझौते पर कई दावे किए. सीएनएन ने उनके कई दावों को गलत बताया है.

1, 2, 3... ट्रंप तो झूठों के सरदार निकले, दे रहे थे भाषण, इधर खुल रही थी पोल

डोनाल्ड ट्रंप ने अपने भाषण में कई झूठे दावे किए.

हाइलाइट्स

  • ट्रंप ने पेरिस जलवायु समझौते पर गलत दावा किया.
  • पनामा नहर में मौतों पर ट्रंप का दावा गलत.
  • ट्रंप ने सोशल सिक्योरिटी पर गलत आंकड़े दिए.

Donald Trump Speech Fact Check: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार रात में अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक को संबोधित किया. राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने पहली बार कांग्रेस को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने बीते 44 दिनों के अपने कामकाज के बारे में कई दावे किए. उन्होंने भारत और चीन के साथ टैरिफ वार और रूस-यूक्रेन वार को लेकर कई अहम बातें कहीं. उन्होंने कहा कि दो अप्रैल से जो देश जितना टैरिफ लगा रहे हैं उसके खिलाफ अमेरिका भी उतना ही टैरिफ लगाएगा. इस दौरान उन्होंने भारत और चीन का जिक्र किया और कहा कि ये देश अमेरिकी समानों पर 100 फीसदी से अधिक टैरिफ लगा रहे हैं.

इस भाषण में उन्होंने अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपति जो बाइडन की खूब आलोचना की. उन्हें अमेरिकी इतिहास का सबसे खराब राष्ट्रपति तक कह दिया. उन्होंने यूक्रेन युद्ध को लेकर भी कई बातें कही. उन्होंने कहा कि उनको यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का खत मिला है जिसमें उन्होंने व्यापक शांति के लिए सहमत होने की बात कही है. लेकिन, ट्रंप ने अपने इस भाषण में कई ऐसे दावे किए जिसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं. अमेरिकी न्यूज संस्थान सीएनएन ने ट्रंप के भाषण के चार अहम बातों को गलत बताया है. फैक्ट चेक के जरिए उनसे इस दावों को गलत बताया है.

पेरिस जलवायु समझौते पर ट्रंप ने गलत दावा किया
ट्रंप ने एक बार फिर पेरिस जलवायु समझौते से हटने का समर्थन करते हुए कहा कि इस समझौते ने अमेरिका पर ट्रिलियन डॉलर का बोझ डाल दिया. जबकि दूसरे देशों को इसके लिए कुछ नहीं देना पड़ा. लेकिन, उनका यह दावा गलत है. दरअसल, पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन ने जलवायु वित्त के लिए सालाना 11.4 अरब डॉलर देने का वादा किया था. लेकिन अमेरिकी कांग्रेस ने बाइडन के तय किए गए लक्ष्य से कम पैसा आवंटित किया. 2022 तक, अमेरिका ने केवल 5.8 अरब डॉलर अंतरराष्ट्रीय जलवायु वित्त के लिए दिए. अमेरिका का जलवायु वित्तीय योगदान कभी भी ट्रिलियन डॉलर तक नहीं पहुंचा. इतना ही नहीं अमेरिका अकेला नहीं था जो जलवायु वित्त में पीछे था. दूसरे देशों ने भी 100 अरब डॉलर के वैश्विक जलवायु वित्त लक्ष्य को पूरा करने में मुश्किलें महसूस कीं. चीन, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ ने भी इस लक्ष्य में योगदान दिया. इस लक्ष्य को अब बढ़ाकर 2035 तक 300 अरब डॉलर वार्षिक किया गया है.

पनामा नहर में हुई मौतों पर ट्रंप ने झूठ बोला
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने यह गलत दावा किया कि पनामा नहर के निर्माण में 38,000 अमेरिकियों की मौत हुई थी. पनामा नहर के निर्माण के दौरान करीब 5,600 लोग मारे गए थे. इनमें से अधिकतर श्रमिक अफ्रीकी-कैरेबियाई थे, जैसे बारबाडोस और जमैका से आए हुए. इतिहासकार डेविड मैककलॉघ के अनुसार पनामा नहर के निर्माण में लगभग 350 गोरे अमेरिकी मारे गए थे. सीएनएन ने इस तथ्य का फैक्ट चेक किया है.

100 साल से अधिक उम्र के लोग सोशल सिक्योरिटी का लाभ ले रहे
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने यह दावा किया कि 47 लाख लोग जो 100 साल से अधिक उम्र के हैं, अभी भी सोशल सिक्योरिटी का लाभ प्राप्त कर रहे हैं. लेकिन, वास्तविकता कुछ और हरै. सोशल सिक्योरिटी प्रशासन के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2024 में केवल 89,000 लोग जो 99 साल या उससे अधिक उम्र के थे, सोशल सिक्योरिटी का लाभ प्राप्त कर रहे थे, न कि लाखों लोग जैसा ट्रंप ने कहा. सोशल सिक्योरिटी प्रशासन के अधिकारी लीलैंड डुडेक ने स्पष्ट किया कि ये आंकड़े उन लोगों के हैं जिनकी मृत्यु की तारीख सोशल सिक्योरिटी रिकॉर्ड में नहीं है. इसका मतलब यह नहीं है कि वे सचमुच लाभ प्राप्त कर रहे हैं.

ट्रंप का दावा- अंडे की कीमत बाइडन के कारण बढ़ी
पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने यह दावा किया कि बाइडन ने अंडे की कीमतों को नियंत्रण से बाहर जाने दिया. असल में, अंडे की कीमतों में वृद्धि का मुख्य कारण एवियन फ्लू (पक्षी फ्लू) था, जिसकी वजह से पूरे देश में पक्षियों के झुंड को मारने की जरूरत पड़ी. यह कदम बाइडन प्रशासन के दौरान उठाया गया था, लेकिन ट्रंप प्रशासन में भी यह जारी रहा क्योंकि एवियन फ्लू का असर बढ़ता रहा. जब बाइडन ने कार्यभार संभाला था, तब अंडों की कीमत औसतन 1.47 डॉलर थी. जनवरी 2023 तक यह कीमत 4.82 डॉलर तक पहुंच गई थी, यानी 228% की बढ़ोतरी. बाइडन के कार्यकाल के अंत तक, जनवरी 2024 में यह कीमत 4.95 डॉलर तक पहुंच गई थी.

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यूक्रेन-रूस युद्ध: नाटो से अमेरिका के अलग होने पर जेलेंस्की की रणनीति संकट में

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यूक्रेन पर रूस के हमले की एक वजह वोलोदिमीर जेलेंस्की की नाटो में शामिल होने चाहत भी थी. वह लगातार ही इस सैन्य गठबंधन में होने की कोशिश में जुटे हैं. हालांकि अब डोनाल्ड ट्रंप के साथ हुए विवाद के बाद एलन मस्क…और पढ़ें

जिसकी चाह में जेलेंस्की ने रूस से लिया पंगा, अब उसी पर खतरा, मस्क की बात समझिए

ट्रंप से नोकझोंक के बाद अब मस्क का नाटो पर किया पोस्ट जेलेंस्की के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है.

हाइलाइट्स

  • जेलेंस्की की NATO में शामिल होने की चाहत से रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ.
  • एलन मस्क ने NATO से अमेरिका के अलग होने का समर्थन किया.
  • अमेरिका के हटने से NATO कमजोर होगा, रूस-चीन का प्रभाव बढ़ेगा.

यूक्रेन और रूस के बीच जंग को तीन साल से ज्यादा वक्त हो गया है. इस जंग की एक वजह तो वोलोदिमीर जेलेंस्की की एक चाहत थी… चाहत उत्तर अटलांटिक संधि संगठन यानी नाटो (NATO) में शामिल होने की… जेलेंस्की चाहते थे कि यूक्रेन भी इन सैन्य गठबंधन का हिस्सा बने, जबकि व्लादिमीर पुतिन बिल्कुल नहीं चाहते थे कि नाटो रूस के इतने करीब तक पहुंचे. पुतिन ने पहले तो जेलेंस्की को चेताया और नहीं मानने पर यूक्रेन पर धावा बोल दिया. 24 फरवरी 2022 को शुरू हुए इस युद्ध के खत्म होने की फिलहाल तो उम्मीद कम ही दिख रही है. वहीं दूसरी तरफ से जेलेंस्की ने जिस नाटो की चाहत में पुतिन से पंगा मोल ले लिया, अब उसी सैन्य संगठन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. वजह है अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके करीबी एलन मस्क का बयान…

मस्क ने संयुक्त राष्ट्र (UN) और नाटो से अमेरिका के अलग होने के प्रस्ताव पर सहमति जताते हुए कहा कि अमेरिका को इन संगठनों से बाहर निकल जाना चाहिए. इससे न केवल नाटो के भविष्य पर सवाल खड़े हो गए हैं, बल्कि यूक्रेन के लिए भी बड़ा झटका साबित हो सकता है, जो इस गठबंधन में शामिल होने की लगातार कोशिश कर रहा है.

एलन मस्क ने क्या कहा?
एलन मस्क ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट को रीट्वीट करते हुए लिखा ‘I agree’ यानी मैं सहमत हूं. यह प्रतिक्रिया सीनेटर माइक ली की तरफ से पेश किए गए एक विधेयक पर थी, जिसमें अमेरिका के यूएन और नाटो से पूरी तरह अलग होने का प्रस्ताव है.

क्या अमेरिका सच में NATO से हट सकता है?
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी कई बार नाटो की फंडिंग को लेकर सवाल उठा चुके हैं. ट्रंप का कहना था कि नाटो में शामिल यूरोपीय देशों को अपनी सुरक्षा का खर्च खुद उठाना चाहिए.

दरअसल अमेरिका नाटो का सबसे बड़ा फंडिंग पार्टनर है. यह पूरा सैन्य गठबंधन एक तरह से अमेरिका की सैन्य शक्ति पर ही टिका है. ऐसे में अगर अमेरिका नाटो से हट जाता है, तो इसके अस्तित्व पर ही सवाल खड़ा हो जाएगा.

यूक्रेन और जेलेंस्की के लिए यह क्यों बड़ा झटका?
रूस के खिलाफ जंग लड़ रहे यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की की सबसे बड़ी रणनीतिक प्राथमिकता नाटो की सदस्यता थी. उनका मानना था कि नाटो में शामिल होकर यूक्रेन को सैन्य सुरक्षा मिलेगी और रूस का प्रभाव कम होगा.

लेकिन अगर अमेरिका NATO से हटता है, तो नाटो की सैन्य ताकत कमजोर हो जाएगी. यूरोपीय देशों को खुद अपनी सुरक्षा करनी होगी, जिससे वे यूक्रेन को उतनी मदद नहीं कर पाएंगे. रूस के लिए एक बड़ा कूटनीतिक और सामरिक अवसर बनेगा.

रूस के लिए क्या मायने रखता है यह घटनाक्रम?
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शुरू से ही नाटो के विस्तार का विरोध करते आए हैं. उनका मानना है कि नाटो का पूर्वी यूरोप में बढ़ता प्रभाव रूस की सुरक्षा के लिए खतरा है.

  • अगर अमेरिका NATO छोड़ता है, तो इसका सीधा फायदा रूस को मिलेगा.
  • NATO कमजोर होगा, जिससे रूस-चीन का प्रभाव बढ़ेगा.
  • यूरोपीय देशों के पास यूक्रेन को मदद देने के लिए सीमित संसाधन होंगे.

क्या अमेरिका वाकई NATO से अलग होगा?
इस सवाल का जवाब भविष्य की राजनीति और अमेरिकी नीतियों पर निर्भर करेगा. हालांकि पहले डोनाल्ड ट्रंप और अब उनके खासमखान एलन मस्क इसके साफ संकेत दे रहे हैं.

एलन मस्क का यह बयान सिर्फ एक पोस्ट नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति के लिए एक बड़ा संकेत है. अगर अमेरिका नाटो से अलग होता है, तो यह विश्व शक्ति संतुलन को पूरी तरह से बदल सकता है. ऐसे में रूस, चीन और यूरोप का भविष्य भी नए मोड़ पर जा सकता है.

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जीरो ग्रेविटी में जीरो पॉलिटिक्स! अंतरिक्ष में फंसी सुनीता विलियम्स के लिए मदद लेकर पहुंचा रूसी स्पेसक्राफ्ट

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Sunita Williams News: रूसी अंतरिक्ष एजेंसी Roscosmos का स्पेसक्राफ्ट शनिवार को खाना और अन्य सप्लाई लेकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पहुंचा. यह सप्लाई सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर समेत ISS पर मौजूद सभी एस्ट्रो…और पढ़ें

जीरो ग्रेविटी, जीरो पॉलिटिक्स! स्पेस में सुनीता के लिए खाना ले गया रूस का यान

रूस का स्पेसक्राफ्ट Sunita Williams समेत फंसे NASA एस्ट्रोनॉट्स के लिए मदद लेकर पहुंचा.

हाइलाइट्स

  • रूसी स्पेसक्राफ्ट ने ISS पर राशन पहुंचाया.
  • सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर आठ महीने से ISS पर फंसे हैं.
  • Crew 10 टीम 12 मार्च को ISS पर पहुंचेगी.

Science News: दुनिया की राजनीति अंतरिक्ष में नहीं चलती! जहां गुरुत्वाकर्षण शून्य होता है, वहां मानवता सबसे बड़ा धर्म बन जाती है. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) बाहरी अंतरिक्ष में मौजूद ऐसी ही एक जगह है. वहां कई महीनों से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA के दो एस्ट्रोनॉट्स- सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर फंसे हुए हैं. उनके और ISS पर मौजूद अन्य एस्ट्रोनॉट्स के लिए राशन व अन्य सप्लाई भेजने का जिम्मा इस बार रूस का था. रूसी स्पेस एजेंसी Roscosmos का Progress 91 शनिवार को सफलतापूर्वक ISS पर डॉक हुआ. यह यान तीन टन खाना, ईंधन और अन्य जरूरी सामान लेकर पहुंचा. Roscosmos का Progress 91 स्पेसक्राफ्ट अगले छह महीने तक ISS पर डॉक रहेगा. इसके बाद इसमें कचरा भरकर पृथ्वी पर लौटने की योजना है.

आठ महीने से फंसे हैं सुनीता और बुच

NASA के एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स और बुच विलमोर पिछले आठ महीने से ISS पर फंसे हुए हैं. वे 5 जून 2024 को Boeing के Starliner से अंतरिक्ष में गए थे, लेकिन तकनीकी खामियों के कारण वापसी संभव नहीं हो सकी. हीलियम लीक और थ्रस्टर मालफंक्शन जैसी समस्याओं ने Starliner को अनसेफ बना दिया. अब, NASA ने कहा है कि दोनों एस्ट्रोनॉट्स की वापसी मार्च के अंत तक हो सकती है. लेकिन यह भी मौसम की स्थिति पर निर्भर करेगा.

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रोजमेरी चिकन, क्रीम बूली… व्हाइट हाउस का वो लजीज लंच जो जेलेंस्की को नसीब नहीं हुआ

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04

AP

इस बीच, यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल पास के एक कमरे में इंतजार कर रहा था, जो विदेशी नेताओं के लिए स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल है. हालांकि, स्थिति ने अप्रत्याशित मोड़ ले लिया. कोलिन्स ने अपनी पोस्ट में आगे बताया, “आमतौर पर वे दोपहर के भोजन के लिए फिर से मिलते हैं. लेकिन यूक्रेनियन व्हाइट हाउस में भोजन नहीं करेंगे. जैसे ही तैयार भोजन पास के एक गलियारे में ट्रॉलियों पर रखा हुआ था, यूक्रेनियन को वहां से जाने का निर्देश दिया गया.”

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