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इंदिरा गांधी ने 1971 में अमेरिकी धमकियों के बावजूद बांग्लादेश को आजादी दिलाई

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यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को व्हाइट हाउस में बुलाकर जिस तरह ट्रंप ने अपमान किया, वैसा ही कुछ 54 साल पहले अमेरिकी प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन ने भारत के साथ करने की कोशिश की थी तब भारतीय पीएम ने कैस…और पढ़ें

कैसे तब इंदिरा अमेरिकी धमकी का बैंड बजाया, US प्रेसीडेंट की ही कर दी छुट्टी

1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में शरणार्थी वहां की सेना के दमनचक्र के कारण भारत पहुंचने लगे थे तो इंदिरा गांधी ने संकेत दे दिया था वो इसे चुपचाप नहीं देख सकतीं. जब इस मामले की बातचीत के लिए वह अमेरिका पहुंचीं तो तत्कालानी अमेरिकी प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन ने एक तरह से उन्हें दबाव में लेने की कोशिश की. अपमानजनक व्यवहार किया. धमकी दी कि अगर भारत ने पूर्वी पाकिस्तान की ओर अपने सैनिक भेजने की हिम्मत की तो ये भारत के लिए बहुत बुरा होगा. इस धमकी से अच्छे खासे देश के राष्ट्रप्रमुखों को पसीना आ जाता लेकिन इंदिरा गांधी तो अलग ही मिट्टी की बनीं थीं. उन्होंने अमेरिकी धमकी का मुंहतोड़ तोड़ जवाब दिया. अमेरिका मुंह लेकर रह गया. कुछ नहीं कर पाया. बल्कि उल्टे अमेरिकी प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन की ही गद्दी चली गई.

आखिर तब कैसे इंदिरा गांधी ने अमेरिका को चुनौती देकर बांग्लादेश में ना केवल सेना भेजी बल्कि उसे पाकिस्तान से तोड़कर आजाद देश भी बनवा दिया. 1971 में बांग्लादेश में मुक्ति संग्राम चल रहा था. पाकिस्तान की सेना बुरी तरह पूर्वी पाकिस्तान कहे जाने वाले इस इलाके में दमनचक्र चलाकर कत्लेआम कर रहे थे.

भारत पर असर इसलिए पड़ रहा था, क्योंकि बडी संख्या में शरणार्थी सीमा पारकर करके असम पहुंचने लगे. इससे भारत के सामने उन्हें ठहराने और भोजने देने का संकट खड़ा हो गया. जाहिर सी बात है कि पूर्वी पाकिस्तान में जो कुछ भी हो रहा था उसका असर भारत पर पड़ रहा था.

पाकिस्तान के तानाशाह जनरल याह्या खान ने 25 मार्च 1971 को ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ के जरिए ढाका में नरसंहार शुरू किया. 30 लाख से अधिक बांग्लादेशी मारे गए. 1 करोड़ से ज्यादा लोग भारत में शरण लेने आए. इंदिरा गांधी ने इसे मानवीय संकट और भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया.

अमेरिका ने इंदिरा गांधी को दी चुपचाप रहने की धमकी
भारत इससे चिंतित था लेकिन अमेरिका ने भारत को धमकी दी कि वो केवल चुपचाप रहे. कुछ भी करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि तब पाकिस्तान अमेरिका के लाड़ले देशों में था. इसी वजह से जब इंदिरा गांधी वाशिंगटन पहुंची तो उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं हुआ. इंदिरा एक झटके से वहां से उठीं और निकल गईं.

इंदिरा का अपमान करने की कोशिश की
अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर खुले तौर पर पाकिस्तान के समर्थन में थे. वे नहीं चाहते थे कि भारत पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में सैन्य हस्तक्षेप करे. निक्सन और किसिंजर ने इंदिरा गांधी को निजी बातचीत में अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया था. हालांकि तब इंदिरा वहां नहीं थीं. 2005 में सार्वजनिक हुई अमेरिकी सरकार की सीक्रेट रिकॉर्डिंग्स से पता चला कि निक्सन ने इंदिरा गांधी के लिए नस्लीय और अपमानजनक शब्द कहे थे. किसिंजर ने भी भारत को “गंदा और अहंकारी देश” बताया था.

तब इंदिरा ने बजा दिया निक्सन का ही बैंड
इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में भारतीय सेना भेजने का फैसला अमेरिका की खुली नाराजगी और धमकियों के बावजूद उनका बैंड बजाने में कोई कोरकसर बाकी नहीं रखी. ये निर्णय उनके राजनीतिक दृढ़ संकल्प, कूटनीतिक चतुराई और रणनीतिक सैन्य तैयारियों का नतीजा था. अमेरिका को इस तरह का जवाब आजतक शायद कोई देश नहीं दे पाया है.

झल्लाने के अलावा कुछ नहीं कर सका अमेरिका
इंदिरा ने जब अमेरिका की धमकी की अनदेखी करते हुए बांग्लादेश में अपनी सेना उतार दी तो अमेरिका बुरी तरह झल्ला गया. अमेरिकी प्रेसीडेंट दूसरे देशों को दबाव में लेने के आदी हैं, वह इंदिरा गांधी की कार्रवाई से स्तब्ध रह गए. फिर भारत को सबक सिखाने के लिए सातवां बेड़ा (USS Enterprise समेत युद्धपोतों का एक समूह) बंगाल की खाड़ी में भेज दिया. इंदिरा उससे भी नहीं डरीं और सैन्य अभियान जारी रखा.

सोवियत संघ के साथ रणनीतिक समझौता
इंदिरा गांधी ने पहले ही इस खतरे को भांप लिया था. अगस्त 1971 में सोवियत संघ (USSR) के साथ 20 वर्षीय भारत-सोवियत संघ मैत्री, शांति और सहयोग संधि (Indo-Soviet Treaty of Peace, Friendship and Cooperation) पर हस्ताक्षर कर लिए थे. इस समझौते ने भारत को राजनीतिक और सैन्य सुरक्षा दी. अगर अमेरिका या चीन ने भारत पर हमला किया, तो सोवियत संघ भारत की मदद के लिए आगे आएगा.

इस संधि के कारण सोवियत नौसेना ने बंगाल की खाड़ी में अमेरिकी सातवें बेड़े को जवाब देने के लिए अपनी पनडुब्बियां तैनात कर दीं. इस कूटनीतिक चाल ने अमेरिका और चीन के किसी भी संभावित हस्तक्षेप को रोक दिया.

इंदिरा गांधी की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति
इंदिरा गांधी ने अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबाव को संतुलित करने के लिए व्यापक कूटनीति अपनाई. उन्होंने अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी की यात्राएं कीं. उन्हें समझाने की कोशिश की कि यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है. जब अमेरिका ने पाकिस्तानी सेना का समर्थन किया, तो इंदिरा गांधी ने सोवियत संघ, फ्रांस और कुछ अन्य देशों को भारत के पक्ष में लाने में सफलता पाई.

भारतीय सेना की रणनीतिक तैयारी और निर्णायक युद्ध
भारत ने 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के हवाई हमलों के जवाब में औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा की. भारतीय सेना ने 13 दिन में ही पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. 16 दिसंबर 1971 को ढाका में जनरल ए. ए. के. नियाज़ी ने 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया, जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था.

अमेरिका देखता रह गया और पाकिस्तान टूट गया
यानि अमेरिका भारत को रोकने में पूरी तरह असफल रहा. निक्सन की धमकियों का इंदिरा गांधी ने बैंड बजा दिया. वो केवल देखते रह गए. झल्लाते रहे. बांग्लादेश आज़ाद ही नहीं हुआ. उसे तुरंत अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी मिलनी शुरू हो गई. इंदिरा गांधी ने अमेरिका के खुले विरोध के बावजूद बांग्लादेश युद्ध में सैन्य कार्रवाई की और एक नए देश को जन्म दिया.

निक्सन नाराज तो थे लेकिन क्या कर पाते
इंदिरा गांधी की हिम्मत और साहस ने तब भारतीय राजनीति में खुद को “लौह महिला” के रूप में स्थापित कर दिया. 1971 के युद्ध के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर की भारत और इंदिरा गांधी के प्रति नाराजगी जारी रही, लेकिन वे सीधे तौर पर कोई और धमकी देने की स्थिति में नहीं थे.

निक्सन प्रशासन ने भारत को दबाव में लाने और उसे सजा देने के लिए कई कदम उठाए. भारत को दी जाने वाली आर्थिक और सैन्य सहायता में कटौती कर दी. अमेरिका ने वर्ल्ड बैंक और अन्य संस्थाओं के जरिए भारत पर दबाव बनाने की कोशिश की लेकिन भारत ने सोवियत संघ और अन्य मित्र देशों से समर्थन लेकर इस असर को कम कर लिया.

रिचर्ड निक्सन को ही देना पड़ा इस्तीफा
जिस घमंडी रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी को धमकी दी, खुद उनका ही पतन हो गया. उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा. 1974 में वाटरगेट स्कैंडल के कारण निक्सन को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा. दूसरी तरफ, इंदिरा गांधी ने भारत को एक मजबूत वैश्विक शक्ति बनाने की दिशा में अपना काम जारी रखा.

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एलन मस्क का जीवन: दिनचर्या, सोने के तरीके और भारतीय खाने की पसंद.

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दुनिया में जिन लोगों में लोग सबसे ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं. जानना चाहते हैं. उसमें एलन मस्क शामिल हैं. आजकल तो ट्रंप का दाहिना हाथ बनकर वो यूं भी खासी चर्चाओं में भी हैं और विवादों में भी.

क्यों जमीन पर ही अक्सर सो जाते हैं एलन मस्क, क्या रहता है रुटीन और खाना-पीना

हाइलाइट्स

  • एलन मस्क ने जमीन पर सोने की बात कई बार खुद ही कही है
  • मस्क का दिन का रुटीन व्यस्त और अनुशासित होता है.
  • मस्क को भारतीय खाना, विशेष रूप से बटर चिकन पसंद है.

एलन मस्क दुनिया के सबसे धनी इंसान ही नहीं हैं बल्कि ऐसी शख्सियत भी जो हमेशा अपनी बातों से चर्चा में भी रहते हैं और विवादों में भी. आजकल अमेरिका में वह प्रेसीडेंट डोनाल्ड ट्रंप के दाएं हाथ माने जा रहे हैं और जो कुछ कर रहे हैं. उसके चलते उनकी जबरदस्त आलोचना भी हो रही है. मस्क कई बार कह चुके हैं वह जमीन पर या अपने आफिस में ही सो जाते हैं.

उन्होंने खासतौर पर टेस्ला और स्पेसX में काम करते समय अपने अजीब सोने के तरीकों के बारे में बताया. 2018 में, टेस्ला की प्रोडक्शन समस्याओं के दौरान उन्होंने कहा कि वे अपनी कार में नहीं बल्कि फैक्ट्री के फ्लोर (ज़मीन) पर सोते थे ताकि काम की निगरानी कर सकें. उनका कहना था, अगर कुछ खराब हो तो वो सबसे ज्यादा मेरे लिए हो, अगर कभी वो कोई दर्द महसूस करें तो मुझे उससे ज्यादा मुझे महसूस हो.

तब उन्होंने कहा था कि उनके पास कोई स्थायी घर नहीं है. अक्सर दोस्तों के घर या ऑफिस में सो जाते हैं. 2022 में उन्होंने कहा कि वे ज़्यादातर समय स्पेसX के मुख्यालय के पास एक छोटे से 50,000 डॉलर के घर में रहते हैं. कई बार वे टेस्ला या स्पेसX ऑफिस में ही सो जाते हैं.

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एलन मस्क आमतौर पर छह घंटे की नींद लेते हैं. रात एक बजे तक सोते हैं.

एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वे रात में सिर्फ 6 घंटे सोते हैं. पहले वे 4 घंटे ही सोते थे, लेकिन यह उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं था, इसलिए उन्होंने 6 घंटे करना शुरू किया. उन्होंने यह भी कहा कि अगर वे और कम सोएंगे, तो उनका दिमाग ठीक से काम नहीं करेगा.

क्या रहता है दिन का रुटीन
एलन मस्क का दिन का रुटीन काफी व्यस्त और अनुशासित होता है.

सुबह की शुरुआत
– एलन मस्क सुबह 7 बजे उठते हैं. करीब 6 से 6.5 घंटे की नींद लेते हैं. वे मानते हैं कि पर्याप्त नींद उनके मानसिक प्रदर्शन के लिए जरूरी है.
-: उठने के बाद उनका पहला काम शॉवर लेना होता है, जो उन्हें तरोताजा करता है और दिन के लिए तैयार करता है.
– वह अक्सर नाश्ता छोड़ देते हैं, लेकिन जब करते हैं, तो आमतौर पर उच्च प्रोटीन वाला भोजन जैसे ऑमलेट लेते हैं, साथ में कॉफी पीते हैं.

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एलन मस्क जमकर काम तो करते हैं लेकिन आमतौर पर उनका रवैये की आलोचना होती है.

काम का समय
– नाश्ते के बाद, वे अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं. फिर काम पर निकल जाते हैं. वह दावा करते हैं कि सप्ताह में 80 से 120 घंटे काम करते हैं, जिसमें अधिकांश समय डिजाइन और इंजीनियरिंग पर केंद्रित होता है.
– एलन गैर-जरूरी मीटिंग्स में भाग नहीं लेते और अपने समय को बहुत महत्व देते हैं.

दोपहर और शाम
– वे आमतौर पर दिनभर में कैलोरी का सेवन कम करते हैं. रात में अधिक खाते हैं. उनका पसंदीदा पेय डाइट कोक है.
– वह रात में करीब 10 बजे घर लौटते हैं, जहाँ वे कुछ देर पढ़ाई करते हैं या एनिमेटेड मूवी देखते हैं.

सोने का समय
– एलन मस्क आमतौर पर रात 1 बजे सोते हैं, जिससे उन्हें अगले दिन के लिए ऊर्जा मिलती है.

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डोनाल्ड ट्रंप की सरकार में एलन मस्क खास भूमिका निभाने जा रहे हैं. (एपी)

खाना कैसा
एलन मस्क की डाइट में मुख्य रूप से सिंपल और घर का बना खाना शामिल होता है. उनकी पसंदीदा चीजों में फल, सब्जियां, और ड्राई फ्रूट्स हैं. वह इंटरमिटेंट फास्टिंग का पालन करते हैं, जिससे उन्होंने लगभग 9 किलो वजन कम किया. एलन मस्क को डोनट्स, शुशी भी पसंद है.

एलन मस्क को भारतीय खाना बहुत पसंद है, विशेष रूप से बटर चिकन और नान. उन्होंने ट्विटर पर एक पोस्ट में इसकी पुष्टि की. मस्क को भारतीय खाने की विविधता और स्वाद पसंद आता है, जो अक्सर उनके ट्विटर पोस्ट में दिखाई देता है.
भारतीय खाने की पसंद के पीछे का कारण यह हो सकता है कि मस्क को विभिन्न फ्लेवर्स और मसालों का मिश्रण पसंद है, जो भारतीय व्यंजनों में प्रचुर मात्रा में होता है.

कौन से काम पसंद
इंजीनियरिंग और डिजाइन – एलन मस्क को इंजीनियरिंग और डिजाइन में बहुत रुचि है. वह टेस्ला और स्पेसएक्स में नए उत्पादों की डिजाइनिंग और विकास में एक्विट रहते हैं.
पढ़ाई और शोध – मस्क को किताबें पढ़ना बहुत पसंद है. वे अपने दिन का एक बड़ा हिस्सा पढ़ाई में बिताते हैं. नई तकनीकों के बारे में जानने का आनंद लेते हैं.
उद्यमिता और नवाचार – एलन मस्क को नए व्यवसाय शुरू करना और नवाचार करना बहुत पसंद है.
फिटनेस और व्यायाम – मस्क को ट्रेडमिल पर दौड़ना और ताइक्वांडो जैसे मार्शल आर्ट पसंद हैं. वह शारीरिक फिटनेस को महत्व देते हैं.

लोग मस्क के बारे में क्या सोचते हैं
उनके साथ काम कर चुके लोग उनकी तारीफ करते हैं तो कुछ उन्हें सनकी और अजीबोगरीब बताते हैं.
करिश्माई नेतृत्व – एलन मस्क को एक करिश्माई नेता के रूप में देखा जाता है, जो अपनी कंपनियों को नए और अनोखे दिशा में ले जाने की क्षमता रखते हैं.
इनोवेशन और उद्यमिता – इनोवेशन में उन्हें खास व्यक्ति माना जाता है. उन्होंने स्पेसएक्स, टेस्ला, और न्यूरालिंक जैसी सफल कंपनियों की स्थापना की. उन्हें एक दूरदर्शी व्यक्ति के रूप में देखा जाता है.
विवादास्पद व्यक्तित्व – मस्क को उनके ट्विटर पोस्ट और सार्वजनिक बयानों के कारण विवादास्पद भी माना जाता है. उनकी टिप्पणियां अक्सर चर्चा में रहती हैं. उन्हें कभी-कभी आलोचना का सामना करना पड़ता है.

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Zelensky US Visit: अमेरिका में जेलेंस्की की फ्लाइट लैंड, क्या डोनाल्ड ट्रंप करेंगे बड़ी डील? लेकिन पेच बहुत

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Zelensky US Visit: यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की अमेरिका दौरे पर हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने वाले हैं. ट्रंप ने दुर्लभ खनिजों की डील की बात कही है, लेकिन विशेषज्ञों को इस पर संदेह…और पढ़ें

US में  जेलेंस्की की फ्लाइट लैंड, क्या ट्रंप करेंगे बड़ी डील? लेकिन पेच बहुत

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की अमेरिका दौरे पर पहुंच चुके हैं. (फोटो AP)

हाइलाइट्स

  • जेलेंस्की अमेरिका दौरे पर पहुंचे.
  • ट्रंप दुर्लभ खनिजों की डील पर संदेह.
  • यूक्रेन में खनिजों की मात्रा कम.

वाशिंगटन: यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की अमेरिका दौरे पर पहुंच चुके हैं. उनकी फ्लाइट युक्त बेस एंड्रयूज पहुंच चुका है. यूक्रेनी राष्ट्रपति के शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मिलने की उम्मीद है. वहीं का दावा है कि जेलेंस्की के साथ वह जो ‘ट्रिलियन-डॉलर डील’ करने वाले हैं, उससे अमेरिका को दुर्लभ खनिजों का खजाना आसानी से मिल जाएगा. लेकिन वर्तमान और पूर्व अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि यूक्रेन में दुर्लभ खनिजों और अन्य खनिज संपत्तियों के बारे में बहुत कम साक्ष्य हैं और जो कुछ भी है, उसे पूर्वी युद्धग्रस्त क्षेत्र में निकालना मुश्किल, यहां तक कि असंभव होगा.

ट्रंप के मुताबिक, यह डील अमेरिकी टैक्सपेयर के लिए फायदेमंद होगी क्योंकि इससे यूक्रेन की सहायता में खर्च हुए अरबों डॉलर की भरपाई होगी. हालांकि, अमेरिकी अधिकारियों और विशेषज्ञों को इस सौदे पर संदेह है. उनका कहना है कि यूक्रेन में दुर्लभ खनिजों की मौजूदगी के बारे में पुख्ता जानकारी नहीं है. मौजूदा आंकड़े पुराने हैं और सोवियत युग के मानचित्रों पर आधारित हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यूक्रेन में उपलब्ध खनिजों की मात्रा वैश्विक स्तर पर बहुत कम है.

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Trump Vs Starmer: …तो आप रूस को संभाल लेंगे? जैसे ही ट्रंप ने ब्रिटिश PM से पूछा सवाल, हक्का-बक्का हो गए स्टार्मर

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Donald Trump Meet With British PM: डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिटिश पीएम कीर स्टारमर से मुलाकात की और रूस-यूक्रेन युद्ध पर चर्चा की. ट्रंप ने पुतिन पर भरोसा जताया और ब्रिटेन की सेना की तारीफ की. ट्रंप के सवाल पर स्टारम…और पढ़ें

...तो आप अकेले रूस को संभाल लेंगे? ट्रंप के सवाल से हक्का-बक्का हो गए स्टार्मर

डेनाल्ड ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ब्रिटिश पीएम के लिए मजे. (फोटो- रायटर्स)

Donald Trump Meet With British PM: अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर शपथ लेने के बाद डोनाल्ड ट्रंप पूरे एक्शन मोड में हैं. उनके शपथ के बाद से विश्व के नेताओं का वॉशिंगटन जाना शुरू हो गया है. मगर वह शपथ लेते ही रूसी राष्ट्रपति को लेकर कई बातें करने लगे, जिन्हें पश्चिमी देशों ने प्रतिबंधित कर रखा है. वह तीन साल से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध को खत्म करने के लिए आश्वस्त हैं. उन्होंने गुरुवार को व्हाइट हाउस में ब्रिटिश पीएम से मुलाकात के बाद कहा कि उन्हें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पर भरोसा है. वह यूक्रेन के साथ संभावित शांति समझौते की शर्तों का उल्लंघन नहीं करेंगे. भले ही उन्होंने शांति सेना के लिए अमेरिकी सैन्य समर्थन देने का वादा करने से इनकार कर दिया हो. व्हाइट हाउस में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर की मेज़बानी करते हुए ट्रंप ने पुतिन के बारे में कहा, ‘मुझे लगता है कि वे अपना वादा निभाएंगे. मैं उन्हें लंबे समय से जानता हूं.’

वहीं, व्हाइट हाउस का एक वीडियो खूब चर्चा में है. इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और ब्रिटिश प्रधानमंत्री स्टार्मर रूस-यूक्रेन मुद्दे पर बात करते दिख रहे हैं. ट्रंप ने यूक्रेन में ब्रिटेन की सेना के काम की तारीफ की है. गुरुवार दोपहर ओवल ऑफिस में, ट्रंप से पत्रकारों ने सवाल किया कि अगर ब्रिटेन यूक्रेन में शांति सेना भेजता है, लेकिन रूस शांति समझौते से मुकर जाए, तो क्या होगा? अगर रूस फिर से हमला करता है, तो क्या अमेरिका यूक्रेन में ब्रिटेन की मदद के लिए आएगा?

वीडियो में ट्रंप और स्टार्मर  के बीच क्या हुई बात-
ट्रंप ने वीडियो में कहा कि उन्हें मदद की ज़रूरत है? मैं हमेशा ब्रिटिशों के साथ रहूंगा, ठीक है! मैं हमेशा उनके साथ रहूंगा, लेकिन उन्हें मदद की ज़रूरत नहीं है. आप उनके करियर को देखें. आपने पिछले कई सालों में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है, है न? इसपर स्टार्मर ने कहा कि हमने किया है. मुझे अपने देश पर बहुत गर्व है और हमने कर दिखाया है, लेकिन हम हमेशा अपने मित्र देशों के बीच एक-दूसरे का समर्थन करते रहे हैं. यही कारण है कि यह समृद्धि और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा गठबंधन है, जो मुझे लगता है कि शायद ही दुनिया ने कभी देखा होगा! जब भी ज़रूरत पड़ी, हमने एक-दूसरे का समर्थन किया, और यही है. इस पर ट्रंप ने मजे लेते हुए कहा, ‘…क्या आप अकेले रूस का मुकाबला कर सकते हैं?’

यहां देखे वीडियो- 

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