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अमर योद्धा: राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की वीरगाथा

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“जो मिट गया, पर झुका नहीं!”

भारत की वीरभूमि ने कई ऐसे सपूतों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा की है। ऐसे ही अमर बलिदानी थे राइफलमैन जसवंत सिंह रावत, जिन्होंने 1962 के भारत-चीन युद्ध में अकेले दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। यह कहानी सिर्फ युद्ध की नहीं, बल्कि एक ऐसे जांबाज़ की है, जिसने शौर्य और साहस की नई परिभाषा लिख दी।

1962: जब तवांग जल उठा

यह वह समय था जब भारत-चीन युद्ध अपने चरम पर था। अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में स्थित नूरानांग पोस्ट पर भारतीय सेना के सैनिक मोर्चे पर डटे हुए थे। इसी दौरान, चीनी सेना ने भारी संख्या में आक्रमण कर दिया। भारतीय सैनिकों की टुकड़ी संघर्ष कर रही थी, लेकिन हथियारों और जनशक्ति की कमी के कारण हालात बिगड़ने लगे।


जसवंत सिंह: अकेला शेर

जब भारतीय टुकड़ियों को पीछे हटने का आदेश दिया गया, तब राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने पीछे हटने से इनकार कर दिया। मात्र 21 वर्ष की उम्र में इस योद्धा ने अद्वितीय साहस का परिचय दिया। वह अकेले ही दुश्मनों से भिड़ गए और तीन स्थानीय मोनपा लड़कियों सेल्मा, नुरा और सुषिला की मदद से एक अभेद्य रणनीति बनाई।


तीन दिनों तक अकेले युद्ध

अगले 72 घंटों तक जसवंत सिंह ने 300 से अधिक चीनी सैनिकों का अकेले सामना किया। उन्होंने कई अलग-अलग बंकरों में बंदूकें लगा दीं और एक से दूसरी जगह जाकर गोलियां बरसाते रहे, जिससे चीनी सेना को लगा कि भारतीय टुकड़ी अभी भी बड़ी संख्या में तैनात है। उनकी इस रणनीति ने दुश्मनों को चौंका दिया।


शहादत, जो अमर हो गई

जब चीनियों को एहसास हुआ कि वे एक अकेले भारतीय सैनिक से मात खा रहे हैं, तो उन्होंने उसे चारों ओर से घेर लिया। जब बचने का कोई रास्ता न रहा, तो जसवंत सिंह ने वीरगति को गले लगा लिया, लेकिन उनके साहस ने भारतीय सेना को फिर से संगठित होने और रणनीति बदलने का समय दे दिया।


राइफलमैन जसवंत सिंह आज भी जीवित हैं!

जसवंत सिंह की बहादुरी से प्रभावित होकर भारतीय सेना ने उन्हें मृत नहीं माना। तवांग में उनकी मेजर रैंक पर पदोन्नति होती है और हर दिन उनके लिए खाना वर्दीधारी सैनिकों द्वारा परोसा जाता है। उनके जूते पॉलिश किए जाते हैं और बिस्तर लगाया जाता है, मानो वे अभी भी ड्यूटी पर हों।


एक प्रेरणा, एक कहानी

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की गाथा केवल एक वीर सैनिक की कहानी नहीं, बल्कि यह एक ऐसा प्रेरणास्त्रोत है जो हमें बताता है कि असली योद्धा वही होता है जो हालातों से नहीं, बल्कि अपने साहस से लड़ता है। उनकी वीरता हर भारतीय के लिए गर्व की बात है और उनका बलिदान हमें सदैव देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत रखता रहेगा।


“जसवंत सिंह रावत शहीद हुए नहीं, अमर हो गए!”

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TenX Crime Files

TenX Crime Files: जब एक पूरा परिवार रहस्यमय तरीके से गायब हो गया – अमरजीत चोहान हत्याकांड

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2003 की शुरुआत में, ब्रिटेन के वेस्ट लंदन में रहने वाले सफल व्यवसायी अमरजीत चोहान अचानक अपने पूरे परिवार के साथ लापता हो गए। अमरजीत, उनकी पत्नी नैन्सी, उनके दो मासूम बेटे और नैन्सी की मां चरणजीत कौर – पांचों एक दिन अचानक गुम हो गए।

शुरुआत में ऐसा लगा कि चोहान परिवार भारत लौट गया है, लेकिन जल्द ही यह मामला एक दिल दहला देने वाली हत्या की गुत्थी में बदल गया।

छोटे संकेतों ने खोला राज़

अमरजीत चोहान का व्यापार लाखों पाउंड का था। उनका कारोबार CIBA Freight नाम की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी के रूप में फल-फूल रहा था। लेकिन कुछ ही हफ्तों में, उनके सभी संपर्क ठप हो गए। उनके कर्मचारी, ग्राहक और दोस्त—सबको लगा कि कुछ गड़बड़ है।

कुछ दिनों बाद, लंदन पुलिस को एक चौंकाने वाला सुराग मिला—अमरजीत चोहान का खून से लथपथ सूटकेस। जल्द ही, इंग्लैंड के दक्षिणी तट के पास उनके शव को समुद्र से बरामद किया गया। लेकिन उनकी पत्नी, बच्चों और सास का कोई पता नहीं था।

बिजनेसमैन जो बना हत्यारा

जांच के दौरान पुलिस का शक केन रेजर नाम के एक शख्स पर गया। केन, जो पहले जेल में रह चुका था, अब चोहान की कंपनी पर कब्जा करने की साजिश कर रहा था। उसने चोहान को ब्लैकमेल करने और उनकी संपत्ति हड़पने के लिए एक शातिर प्लान बनाया था।

लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। जब पुलिस ने केन के रिकॉर्ड को खंगाला, तो उन्हें एक खौफनाक खुलासा हुआ—केन सिर्फ अमरजीत को ही नहीं, बल्कि उनके पूरे परिवार को ठिकाने लगा चुका था!

भयानक सच सामने आया

जांच के दौरान पता चला कि केन ने अमरजीत को अगवा कर लिया था और कई दिनों तक प्रताड़ित किया। जब अमरजीत ने अपने बिजनेस के कागजात उसके नाम करने से इनकार कर दिया, तो उसे मौत के घाट उतार दिया गया।

इसके बाद केन ने अमरजीत की पत्नी, बच्चों और उनकी सास को भी एक-एक करके मार डाला। शवों को ठिकाने लगाने के लिए उसने उन्हें समुद्र में फेंक दिया, ताकि कोई सबूत न बचे।

इंसाफ का इंतजार और न्याय की जीत

लंदन पुलिस ने महीनों की मेहनत और गहरी जांच के बाद आखिरकार केन रेजर को गिरफ्तार कर लिया। मुकदमे में उसकी साजिशें बेनकाब हुईं और उसे ताउम्र कैद की सजा सुनाई गई।

इस हत्याकांड ने ब्रिटेन को हिला कर रख दिया था। अमरजीत चोहान, जो एक साधारण भारतीय प्रवासी से एक सफल बिजनेसमैन बने थे, का अंत इतना भयानक होगा, किसी ने नहीं सोचा था।

न्याय मिला, लेकिन घाव रह गए

आज भी चोहान परिवार का मामला अपराध जगत की सबसे डरावनी कहानियों में से एक माना जाता है। यह सिर्फ एक मर्डर केस नहीं था, बल्कि यह दिखाता है कि लालच और क्रूरता इंसान को किस हद तक गिरा सकती है।

क्या आप सोच सकते हैं कि कोई इतना निर्दयी कैसे हो सकता है कि मासूम बच्चों तक को मार डाले?

यह थी TenX Crime Files की एक और दिल दहला देने वाली सच्ची कहानी। ऐसे ही रहस्यमयी और रोमांचक अपराध मामलों के लिए जुड़े रहें!

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TenX Exclusive

अमर बलिदान: जब कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला ने मौत को गले लगाया, पर कर्तव्य को नहीं छोड़ा

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एक सच्चा योद्धा अपने जहाज को नहीं छोड़ता, वह उसके साथ डूब जाता है।” यह सिर्फ एक कहावत नहीं, बल्कि कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला की शौर्यगाथा है, जिन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध में INS खुखरी के साथ वीरगति प्राप्त की। यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस जज्बे की है जो भारत के हर वीर योद्धा में बसता है।

“9 दिसंबर 1971: जब समंदर बना रणभूमि”

यह रात आम रातों जैसी नहीं थी। अरब सागर की लहरों के बीच भारतीय युद्धपोत INS खुखरी अपने कर्तव्य पर था। मगर अंधेरे में दुश्मन ताक में था—पाकिस्तानी पनडुब्बी PNS हंगोर, जो मौत का फरमान लेकर आई थी।

अचानक, पानी में हलचल हुई और एक टॉरपीडो सीटी की तरह चीखता हुआ INS खुखरी की तरफ बढ़ा। टक्कर इतनी जबरदस्त थी कि जहाज कांप उठा। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, दूसरा टॉरपीडो लगा और जहाज मौत की गहराइयों में जाने लगा।


“कप्तान जो भागा नहीं, बल्कि मोर्चे पर डटा रहा!”

इस भीषण हमले में कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला के पास दो रास्ते थे—या तो खुद को बचाकर बाहर निकल जाएं, या अपने साथियों के लिए अंत तक डटे रहें। उन्होंने दूसरा रास्ता चुना।

  • जहाज बुरी तरह डगमगा रहा था, लेकिन कैप्टन मुल्ला अपने साथियों को बचाने में जुट गए
  • घायल नौसैनिकों को सुरक्षित निकालने का आदेश दिया।
  • जैसे ही एक नाविक उन्हें लाइफबोट में बुलाने आया, उन्होंने मना कर दिया और कहा—
    “कैप्टन जहाज के साथ जाता है!”

यह सिर्फ शब्द नहीं थे, यह बलिदान की शपथ थी। जब आखिरी नाव रवाना हुई, तब तक कैप्टन मुल्ला जहाज के डूबते डेक पर खड़े थे, सिर ऊंचा और नजरें अडिग।


“जहाज डूबा, पर एक योद्धा की कहानी अमर हो गई!”

INS खुखरी ने दो मिनट से भी कम समय में समुद्र की गहराइयों में दम तोड़ दिया। साथ ही, 18 अधिकारियों और 176 नौसैनिकों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। मगर, कैप्टन मुल्ला का यह बलिदान अमर हो गया।

उनकी वीरता को मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। मगर सच्चा सम्मान यह है कि हर भारतीय नौसेना का अधिकारी आज भी उनका नाम गर्व से लेता है और उनके बलिदान को अपनी प्रेरणा मानता है।


“कहानी जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बनी!”

आज जब हम वीरता की कहानियां पढ़ते हैं, तो कैप्टन महेंद्र नाथ मुल्ला का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जाता है। यह सिर्फ एक इंसान की कहानी नहीं, बल्कि कर्तव्य, बलिदान और अटूट साहस की मिसाल है।

क्योंकि कुछ लोग मौत से नहीं डरते, बल्कि उसे गले लगाकर इतिहास बना जाते हैं!


“नमन है उस योद्धा को, जिसने अपने देश के लिए समंदर को अपना अंतिम घर बना लिया!”

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